हरा पातफूदक :
पौधों के पर्णसमूह पर हरे रंग का पात फुदक पाया जाता है। उत्तरी भारत में ये जून-जुलाई में प्रकट होते हैं और सितम्बर-अक्टूबर में चरम आक्रमण होता है। हरे पात फुदक के अर्भक (निम्फ) एवं वयस्क हरे रंग के होते है, पत्तियों से रस चूसते है और पौधे में कुछ जीव विष भी भीतर डालते है। पूर्वी एवं दक्षिणी भारत में हरा पात फुदक खरीफ एवं रबी दोनों फसलों मे सक्रिय रहते है। प्रभावित पत्तियां सिरे से नीचे की ओर भूरी हो जाती है और ''पात फुदक दाह'' के लक्षण प्रदर्षित करते है। वयस्क पंखो पर काली चित्तियॉ एवं काले धब्बे रखते हैं। मादा कीट पर्णच्छद के भीतरी पृष्ठ पर समूहों में अण्डे देती है। कई खरपतवार इस नाशकजीव के लिए एकान्तर परपोशियों का कार्य करते है। हल्का कीट ग्रसन पौधों के ओज को घटाते है जबकि भारी कीटग्रसनों से फसल मुरझा जाती है और पूरी तरह से सूख जाती है। सीधी क्षति के अतिरिक्त, हर पात फुदक (एम0 विरेसेन्स) टुंग्रों विषाणु रोग भी संचरित करता है। इसलिए हरे पात फुदक के लिए आर्थिक प्रभाव सीमा स्तर टुंग्रो महामारी वाले क्षेत्रों में 2 पातफुदक/हिल है जबकि अन्य क्षेत्रों में 10 पातफुदक/है0 है। एन0 निग्रोपिक्टस धान का अस्थायी पीलापन, पीली-बौनी एवं पीली नारंगी पत्ती रोग के वाहक के रूप में कार्य करता है।
प्रबन्ध :
- खेत एवं मेढ़ों से खरपतवारों एवं अधिक नर्सरियों को निकालिए।
- खेतों का बारी-बारी से आर्द्रण एवं शुष्कन सुनिश्चित कीजिए।
- नाइट्रोजन के अधिक प्रयोग से बचिए।
- कीट संख्या अनुश्रवण एवं नियंत्रित करने के लिए प्रकाश पाश स्थापित कीजिए।
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