फसलोत्पादन
धान
• धान में नाइट्रोजन की दूसरी व अनितम टाप ड्रेसिंग बाली बनने की प्रारमिभक अवस्था(रोपार्इ के 50-55 दिन बाद) में, अधिक उपज वाली प्रजातियों में प्रति हेक्ट्रेयर 30 किग्रा(65 किग्रा यूरिया) तथा सुगनिधत प्रजातियों में प्रति हेक्ट्रेयर 15 किग्रा (33 किग्रा यूरिया) की दर से करें।
• खेत में टाप ड्रेसिंग करते समय 2-3 सेंटीमीटर से अधिक पानी नही होना चाहिए।
• धान में बालियाँ फूटने तथा फूल निकलने के समय पर्याप्त नमी बनाये रखने के लिए आवष्यकतानुसार सिंचार्इ करें।
• तना छेदक की रोकथाम के लिए ट्राइकोग्रामा नामक परजीवी को 8-10 दिन के अन्तराल पर छोड़ना चाहिए या प्रति हेक्ट्रेयर 20 किग्रा कार्बोफ्यूरान दवा का प्रयोग करें। अथवा क्लोपायरीफास 20 र्इ़.सी. 1.5 लीटर प्रति हेक्ट्रेयर की दर से 600 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
• धान के भूरे फुदके से बचाव के लिए खेत में पानी निकाल दें। नीम आयल 1.5 लीटर प्रति हेेक्ट्रेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए।
• जीवाणुधारी रोग व जीवाणु झुलसा रोग की रोकथाम के लिए पानी निकाल दें, नाइट्रोजन की टाप ड्रेसिंग बन्द कर देें। एग्रीमाइसीन 100 का 75 ग्राम या स्टे्रप्टोसाइक्लीन 15 ग्राम व 500 ग्राम कापर आक्सीक्लोराइड को 500-600 लीटर पानी में धोलकर 10 दिन के अन्तराल पर 2-3 छिड़काव करें।
• भूरा धब्बा रोग की रोकथाम के लिए जिंक मैग्नीज कार्बामेट 75 प्रतिशत का 2 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से धोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए।
मक्का
• मक्का में अधिक बरसात होने पर जल-निकास की व्यवस्था करें।
• फसल में नर मंजरी निकलने की अवस्था एंव दाने की दूधियावस्था सिचार्इ की दृषिट से विशेष महत्वपूर्ण हैं। यदि विगत दिनों में वर्षा न हुर्इ हो या नमी की कमी हो तो सिंचार्इ अवश्य करें।
ज्वार
• ज्वार से अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए वर्षा न होने या नमी की कमी होने पर बाली निकलने के समय तथा दाना भरते समय सिंचार्इ करें।
• अर्गट या शर्करीय रोग की रोकथाम के लिए रोगग्रस्त पौधों को उखाड़कर जला दें। जीरम का 0.15 प्रतिशत धोल बनाकर फूल आने के समय 7-10 दिन के अन्तराल पर 2-3 छिड़काव करें। दूसरे छिड़काव के साथ उक्त दवा के साथ 0.1 प्रतिशत कार्बरिल नामक कीटनाशी भी मिला देना चाहिए।
• र्इयर हेडमिज व र्इयर हेडबग के रोकथाम करें।
बाजरा
• बाजरा की उन्नत संकर प्रजातियों में नाइट्रोजन की शेष आधी मात्रा यानि 40-50 किग्रा (87-108 किग्रा यूरिया) की टाप ड्रेसिंग बोआर्इ के 25-30 दिन बाद करें।
मूँगउर्द
• वर्षा न होने पर कलियाँ बनते समय पर्याप्त नमी रखने के लिए सिंचार्इ करें।
• फली छेदक कीट की सूडि़याँ, जो फली के अन्दर छेद करके दानों को खाती हैं, को रोकथाम के लिए निबौली का 5 प्रतिशत या क्यूनालफास 25 र्इ. सी. की 1.25 लीटर मात्रा का प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए।
सोयाबीन
• सोयाबीन में वर्षा न होने पर फूल एंव फली बनते समय सिंचार्इ करें।
• सोयाबीन में पीला मोजैक बीमारी की रोकथाम के लिए प्रभावित पौधों को निकालकर डार्इमेथोएट 30 र्इ.सी. 1 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें।
मूँगफली
• मूँगफली में खूँटिया बनते (पेगिंग) समय तथा फलियाँ बनते समय पर्यप्त नमी बनाये रखने के लिए आवश्यकतानुसार सिंचार्इ अवश्य करें।
• अधिक वर्षा होने पर जल-निकास की उचित व्यवस्था करें।
• टिक्का बीमारी की रोकथाम के लिए प्रति हेक्टेयर जिंक मैग्नीज कार्बामेट 2.0 किग्रा या जिनेब 75 प्रतिशत की 2.5 किग्रा या जिरम 27 प्रतिशत तरल 3 लीटर का 2-3 छिड़काव 10 दिन के अन्तराल पर करना चाहिए।
सूरजमुखी
• यदि बरसात न हुर्इ हो तो फूल निकलते समय व दाना बनते समय भूमि में पर्याप्त नमी बनाते रखने के लिए सिंचार्इ अवश्य करें।
• सूरजमुखी के फूल में नर भाग पहले पकने के कारण परपरागण (मधुमकिखयों द्वारा) होता हैं। अत: खेत में या मेड़ो पर बक्सों में मधुमक्खी पालन किया जाय तो मुण्डकों में अधिक बीज बनने से उपज में वृद्वि होगी और साथ ही शहद भी अतिरिक्त आय के रूप में प्राप्त होगी।
• सूरजमुखी में हेडराट, जिसमें पहले तने व फिर मुण्डकों पर काले धब्बे बनते हैं, की रोकथाम के लिए मैकोजेब 0.3 प्रतिशत का मुण्डक बनते समय छिड़काव करना चाहिए।
• मुण्डकों को चिडि़यों से बचाने के लिए अधिक लोग एक साथ बोआर्इ करें। रंगीन चमकीली पनिनयों को फसल के आधा से एक मीटर ऊपर बाँधने से सुरक्षा की जा सकती हैं।
गन्ना
• गन्ने को बाँधने का कार्य, खासकर जिस गन्ने की अच्छी बढ़वार हो, पूरी कर लें।
• पहले कतार के अन्दर ही सवा से डेढ़ मीटर की ऊँचार्इ पर गन्ने को बाँध दें। आगे चलकर एक कतार के गन्ने को दूसरे कतार के गन्ने से बाँधे। ध्यान रखें बाँधते समय ऊपर की पतितयां न टूटे।
• पायरिला की रोकथाम के लिए प्रति हेक्टेयर फास्फेमिड़ान 300-400 मिलीलीटर या मिथाइल डि़मेटान 1.5 लीटर 1000 लीटर पानी में धोल बनाकर छिड़काव करें।
• गन्ने में गुरूदासपुर बोरर व शीर्ष बेधक (टाप बोरर) की रोकथाम के लिए थायोडान 35 र्इ.सी. की प्रति हेक्टेयर 1.5 लीटर मात्रा का 800-1000 लीटर में धोलकर छिड़काव करें।
तोरिया
• तोरिया की रोपार्इ के लिए सितम्बर का दूसरा पखावाड़ा सबसे उत्तम हैं।
• टा0-9, भवानी, पी.टी. 30 व पी.टी. 507 तोरिया की अच्छी प्रजातियाँ हैं।
• प्रति हेक्टेयर बोआर्इ के लिए 4 किग्रा बीज की आवश्यकता होती हैं।
• बोआर्इ के लिए सदैव उपचारित बीज का प्रयोग करें।
• तोरिया की बोआर्इ 30×10-15 सेंटीमीटर पर, 3-4 सेंटीमीटर गहरी कूड़ों में करें।
• उर्वरकों का प्रयोग मृदा परीक्षण के आधार पर करें। यदि मृदा परीक्षण न हो तो सिंचित दशा में बोआर्इ के समय प्रति हेक्टेयर 50 किग्रा नाइट्रोजन, 50 किग्रा फास्फेट व 50 किग्रा पोटाश का प्रयोग करें।
• असिंचित दशा में 50 किग्रा नाइट्रोजन, 30 किग्रा फास्फेट व 30 किग्रा पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर सें प्रयोग करें।
• फास्फेट तत्व के लिए सिंगल सुपर फास्फेट का प्रयोग करें, यदि सिंगल सुपर फास्फेट उपलब्ध न हो तो प्रति हेक्टेयर 30 किग्रा गन्धक का प्रयोग करना चाहिए।
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