सिंचाई :
पूरे वर्ष भर सुवितरित वर्षा (> 125 से.मी.) वाले क्षेत्रों में सिंचाई के बिना लीची की बागवानी की जा सकती है। प्रारम्भिक पादप वृध्दि के दौरान प्राय: सिंचाई आवश्यक होती है। पुष्पन से पहले चार माह तक सिंचाई रोकी जा सकती है। सिंचाई के लिए क्रांतिक अवधि फरवरी से लेकर मानसून के प्रारम्भ तक होती है क्योंकि यह फल विकास की अवधि है। इस अवधि के दौरान यदि लीची के बाग में बारंबार सिंचाई नहीं की जाती है तो गम्भीर फल पतन एवं फल तिड़कन की समस्या उत्पन्न हो सकती है।
सिंचाई की विधि :
अधिकतर सिंचाई वलयाकार थाला विधि द्वारा की जाती है। सिंचाई की विभिन्न विधियाँ हैं, जैसे बूँद सिंचाई, छिड़काव सिंचाई और बबलर सिंचाई आदि। बूँद सिंचाई से हम पानी बचा सकते हैं और फर्टिगेशन (सिंचाई सह उर्वरक प्रयोग) द्वारा सूक्ष्म पोषक तत्व एवं वृहत पोषक तत्वों की भी पूर्ति कर सकते हैं। फलन समय के दौरान छिड़काव सिंचाई फल तिड़कन न्यूनतम होती है।
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