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मार्च के मुख्य खेती-बाड़ी कार्य

फसलोत्पादन

गेहूँ

>बोआर्इ के समय के अनुसार गेहूँ में दाने की दुधियावस्था में 5वीं सिंचार्इ बोआर्इ के 100-105 दिन की अवस्था पर और छटीं व अनितम सिचांर्इ बोआर्इ के 115-120 दिन बाद दाने भरते समय करें।
>जिस गेहूँ की बोआर्इ मध्य दिसम्बर के आस-पास हुर्इ हों, उनमें चौथी सिंचार्इ पुष्पावस्था पर और पाँचवी सिंचार्इ दुधियावस्था पर करें।
>गेहूँ में इस समय हल्की सिंचार्इ (5सेंमी) ही करें। तेज हवा चलने की सिथति में सिंचार्इ न करे अन्यथा फसल गिरने का डर रहता हैं।
>गेहूँ की फसल को चूहों से बचाने के लिए जिंक फास्फाइड से बने चारे अथवा एल्यूमिनियम फास्फाइड की 0.6 ग्राम की टिकिया चूहों के बिलों में रखकर बिल बन्द कर दें।

जौं


>यदि जौं की बोआर्इ देर से हो तो इसमें तीसरे और अनितम सिंचार्इ दुधियावस्था में बोआर्इ के 95-100 दिन की अवस्था में करें।

चना


>चने की फसल में दाने बनने की अवस्था में सिंचार्इ करें।
>चने की फसल में दाना बनने की अवस्था में फलीछेदक कीटो का अत्याधिक प्रकोप होता हैं। फली छेदक कीट की रोकथाम के लिए प्रति हेक्टेयर मोनोक्रोटोफास दवा की 0.75 लीटर मात्रा 700-800 लीटर पानी में धोलकर छिड़काव करें।

गन्ना
>गन्ना की बोआर्इ का कार्य 15-20 मार्च तक पूरा कर लें।
>मध्य एंव पशिचमी उत्तर प्रदेश के लिए को.शा. 7918 को.शा. 802, को.शा. 767, को.शा. 8118, को.शा. 90269 तथा पूर्वी उत्तर प्रदेश के लिए को.शा. 7918 को.शा. 767, को.शा.8407, यू.पी. 15 यू.पी. 12 मध्य एवं देर से पकने वाली प्रजातियाँ हैं।
>शीध्र पकने वाली प्रजातियों में पशिचमी व मध्य क्षेत्र के लिए को.शा. 684, को.शा. 8436, को.शा. 92254, को. पन्त 84211 तथा पूर्वी उत्तर प्रदेश के लिए को.शा.687, को.शा.8436 उपयुक्त प्रजातियाँ हैं।
>गन्ने के लिए प्रति हेक्टेयर 60-70 कुन्तल बीज (35000-40000 बीजू टुकडें) पर्याप्त होगा।
>बोआर्इ 75-90 सेंमी दूर बनी कूड़ों में 10 सेंमी की गहरार्इ में करें।
>उर्वरकों का प्रयोंग मृदा परीक्षण के आधार पर करें, यदि परीक्षण न हुआ हो तो बोआर्इ के समय प्रति हेक्टेयर 60-75 किग्रा नाइट्रोजन, 80 किग्रा फास्फेट व 60 किग्रा पोटाश का प्रयोग करें।
>तीन आँखों वाले गन्ने के टुकडों को दवा में 5 मिनट तक उपचारित करके बोयें। 250 ग्राम एरीटान अथवा 500 ग्राम एकलाल 100 लीटर पानी में धोलकर उससे 25 कुन्तल गन्ने के टुकडों को उपचारित किया जा सकता हैं।
>दीमक, जड़ तथा तनाछेदक कीटों से बचाने के लिए कूँड़ में बोयें गये गन्ने के ऊपर 5-6 लीटर गामा बी.एच.सी.(20र्इ.सी.) को 1000 लीटर पानी में धोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से बोये टुकड़ों के ऊपर छिड़ककर मिðी से ढक दें।
>गन्ने की दो कतारों के मध्य उर्द अथवा मूँग की दो-दो कतारें या भिण्ड़ी की एक कतार मिलवाँ फसल के रूप में बोर्इ जा सकती हैं।
>यदि गन्ने के साथ सहफसली खेती करनी हो तो गन्ने की दो कतारों के बीच की दूरी 90 सेंमी रखें।
>गन्ने की पेंड़ी से अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए खेत से खरपतवार निकाल दें या खरपतवार के रासायनिक नियन्त्रण के लिए उनके उगने से पूर्व पेड़ी की कलिकाओं के निकलते समय (रैटूनिंग) प्रति हेक्टेयर एट्राजीन 2.0 किग्रा (सकि्रय तत्व) का छिड़काव करना चाहिए।
>पेड़ी की फसल में 12-15 दिनों के अन्तराल पर सिंचार्इ करते रहें।
>पेड़ी की फसल में प्रति हेक्टेयर 180 किग्रा नाइट्रोजन का प्रयोग करना चाहिये । नाइट्रोजन की सम्पूर्ण मात्रा का आधा भाग अर्थात 90 किग्रा (195 किग्रा यूरिया) फसल काटने के बाद तथा इतनी ही मात्रा दूसरी या तीसरी सिंचार्इ के समय प्रयोग करें।
>इस समय गन्ने की कटार्इ करने पर पेड़ी की फसल में अन्त सस्य के रूप में मूँगउर्दलोबिया इत्यादि बोना अच्छा होगा।

सूरजमुखी


>सूरजमूखी की बोआर्इ 15 मार्च तक पूरा कर लें।
>सूरजमूखी की फसल में बोआर्इ के 15-20 दिन बाद फालतू पौधों को निकाल कर पौधे से पौधे की दूरी 20 सेंमी कर लें और तब सिंचार्इ करें।
>पहली सिंचार्इ के बाद आमतौर पर 10-15 दिन के अन्तर पर सिंचार्इ करनी चाहिए।
>सूरजमूखी में 25-30 दिन की अवस्था पर 40 किग्रा नाइट्रोजन (82 किग्रा यूरिया) की टाप ड्रेसिंग कर दें। यदि आलू की खुदार्इ के बाद बोआर्इ की गर्इ हो तो 30 किग्रा नाइट्रोजन (65 किग्रा यूरिया) की टाप ड्रेसिंग पर्याप्त होगी।

उर्दमूँग


>बसन्त ऋतु की मूँग व उर्द की बोआर्इ के लिए यह माह अच्छा हैं। इन फसलों की बोआर्इ गन्ना, आलू तथा रार्इ की कटार्इ के बाद की जा सकती हैं।
>उर्द की टा-9, पन्त यू19, पन्त यू. 30, आजाद-1, पन्त यू. 35 तथा मूँग की पन्त मूँग-1, पन्त मूँग-2, नरेन्द्र मूँ ग-1,टा.44,पी.डी.एम 54, पी.डी.एम 11, मालवीय जागृति, मालवीय जनप्रिया अच्छी प्रजातियाँ हैं।
>इस समय उर्द व मूँग के लिए प्रति हेक्टेयर 25-30 किग्रा बीज की आवश्यकता होगी।
>उर्द व बोआर्इ 25 सेंमी दूर कतारों में तथा मूँग की बोआर्इ 30 सेंमी दूर कतारों में करें।
>उर्द व मूँग की फसलों में बोआर्इ के समय 100 किग्रा प्रति हेक्टेयर ड़ी.ए.पी. उर्वरक प्रयोग करें।

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