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महत्व: गेहूँ

महत्व

गेहूँ (ट्रिटिकम जाति) विष्वव्यापी महत्व की फसल है। यह फसल नानाविध वातावरणों में उगाई जाती है। यह लाखों लोगों का मुख्य खाद्य है। विष्व में कुल कृश्य भूमि के लगभग छठे भाग पर गेहूँ की खेती की जाती है यद्यपि एषिया में मुख्य रूप से धान की खेती की जाती है, तो भी गेहूँ विष्व के सभी प्रायद्वीपों में उगाया जाता है। यह विष्व की बढ़ती जनसंख्या के लिए लगभग 20 प्रतिषत आहार कैलोरी की पूर्ति करता है। वर्श 2007-08 में विष्वव्यापी गेहूँ उत्पादन 62.22 करोड़ टन तक पहुँच गया था। चीन के बाद भारत गेहूँ दूसरा विषालतम उत्पादक है। गेहूँ खाद्यान्न फसलों के बीच विषिश्ट स्थान रखता है। कार्बोहाइड्रेट और प्रोटीन गेहूँ के दो मुख्य घटक हैं। गेहूँ में औसतन 11-12 प्रतिषत प्रोटीन होता हैं। गेहूँ मुख्यत: विष्व के दो मौसमों, यानी षीत एवं वसंत ऋतुओं में उगाया जाता है। षीतकालीन गेहूँ ठंडे देषों, जैसे यूरोप, सं. रा. अमेरिका, आस्ट्रेलिया, रूस राज्य संघ आदि में उगाया जाता है जबकि वसंतकालीन गेहूँ एषिया एवं संयुक्त राज्य अमेरिका के एक हिस्से में उगाया जाता है। वसंतकालीन गेहूँ 120-130 दिनों में परिपक्व हो जाता है जबकि षीतकालीन गेहूँ पकने के लिए 240-300 दिन लेता है। इस कारण षीतकालीन गेहूँ की उत्पादकता वंसतकालीन गेहूँ की तुलना में अधिक हाती है। गुणवत्ताा को ध्यान में रखकर गेहूँ को दो श्रेणियों में विभाजित किया गया है:

  • मृदु गेहूँ एवं
  • कठोर गेहूँ।

ट्रिटिकम ऐस्टिवम (रोटी गेहूँ) मृदु गेहूँ होता है और ट्रिटिकम डयूरम कठोर गेहूँ होता है।

भारत में मुख्य रूप से ट्रिटिकम की तीन जातियों जैसे ऐस्टिवम, डयूरम एवं डाइकोकम की खेती की जाती है। इन जातियों द्वारा सन्निकट सस्यगत क्षेत्र क्रमष: 95, 4 एवं 1 प्रतिषत है। ट्रिटिकम ऐस्टिवम की खेती देष के सभी क्षेत्रों में की जाती है जबकि डयूरम की खेती पंजाब एवं मध्य भारत में और डाइकोकम की खेती कर्नाटक में की जाती है।




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