Submitted by akanksha on Tue, 23/02/2010 - 15:13
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भूरा पर्ण चित्ती :
रोगकारी जीव : हेल्मिन्थोस्पोरियम ओराइजी (कॉक्लियोबोलस मियाबीनस)
- सिलिका, पौटेशियम, मैंगनीज या मैग्नीशियम या हाइड्रोजन सल्फाइड उपस्थिति में कमी रखने वाली मृदाएं इस रोग के लिए अनुकूल होती हैं।
- उस मसय भूरी चित्ती रोग भी आक्रमण करता है जब पछेती वृध्दि अवस्थाओं पर नाइट्रोजन न्यूनता (कमी) होती है।
उस समय पौधे कम ग्रहणशील होते है जब मृदाओं में फॉस्फोरस स्तर कम होते हैं।
लक्षण :
- यह रोग पत्तियों एंव तुशों पर प्रकट होता है।
- पत्तियों पर विशेष प्रकार की चित्तियों अण्डाकार, एक समान होती है और पत्ती के पृष्ठ पर समान रूप से वितरित होती हैं।
- छोटे या अविकसित चित्तियॉ छोटी एंव गोल होती हैं और गहरे भूरे रंग या बैंजनी-भूरे बिन्दुओ के रूप में प्रकट होती है जब वे पूरी तरह से विकसित होती है तो वे धूसरया सफेद-सा केन्द्र के साथ भूरे रंग के हो जाते है।
- तुशों पर काली या गहरी भूरे रंग की चित्तियॉ प्रकट होती है जो गंभीर मामलो में भूरे तुशों के ढक लेती हैं।
अनुकूल जलवायु दशाओं के अंतर्गत इन चित्तियों पर गहरे रंग के कोनिडियम बीजाणु एवं कोनिडियम विकसित होते है जो उन्हें देखने में मखमल सदृष्य बनाते है।
प्रबन्ध :
- दकार नागरा, 273-22, 5-34-33, पटनई 23, कल्भा 219, नागरा 41-14, सी - एच 13, सी-एच 45, टी-498-2ए, बीए एम - 10, आई0 आर0 - 42, टी-988, एम टी-2112 एवं टी-960 जैसी रोग प्रतिरोधी प्रजातियां उगाइए।
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