Submitted by kiran yadav on Tue, 08/06/2010 - 23:48
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भूरापर्ण चित्ती :
रोगकारी जीव : हेल्मिन्थोस्पोरियम ओराइजी (कॉक्लियोबोलस मियाबीनस)
- सिलिका, पौटेषियम, मैंगनीज या मैग्नीषियम या हाइड्रोजन सल्फाइड उपस्थिति में कमी रखने वाली मृदाएं इस रोग के लिए अनुकूल होती हैं।
- उस मसय भूरी चित्ती रोग भी आक्रमण करता है जब पछेती वृध्दि अवस्थाओं पर नाइट्रोजन भूरी न्यूनता कमी होती है।
- उस समय पौधे कम ग्रहणषील होते है जब मृदाओं में फॉस्फोरस स्तर कम होते हैं।
लक्षण :
- यह रोग पत्तियों एंव तुशों पर प्रकट होता है।
- पत्तियों पर विषेश प्रकार की चित्तियाँ अण्डाकार, एक समान होती है और पत्ती के पृश्ठ पर समान रूप से वितरित होती हैं।
- छोटे या अविकसित चित्तियाँ छोटी एंव गोल होती हैं और गहरे भूरे रंग या बैंजनी - भूरे बिन्दुओ के रूप में प्रकट होती है जब वे पूरी तरह से विकसित होती है। तो वे धूसरया सफेद - सा केन्द्र के साथ भूरे रंग के हो जाते है।
- तुषों पर काली या गहरी भूरे रंग की चित्तियाँ प्रकट होती है जो गंभीर मामलो में भूरे तुशों के ढक लेती हैं।
- अनुकूल जलवायु दषाओं के अंतर्गत इस चित्तियों पर गहरे रंग के कोनिडियम बीजाणु एवं कोनिडियम विकसित होते है जो उन्हें देखने में मखमल सदृष्य बनाते है।
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