Submitted by deepalitewari on Mon, 23/11/2009 - 12:20
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फ्यूजेरियम म्लानि
रोगकारी जीव - फ्यूजेरियम ऑक्सीस्पोरम एफ0 पाइसाइ
यह बीज के साथ-साथ मृदा वाहित रोग ग्रीष्मकालीन (मई-जून) फसल में धीरे-धीरे गंभीर रूप धारण करता है।
लक्षण:
- 3 से 5 सप्ताह के पौधों पर रोग के लक्षण अधिक सुस्पष्ट हो जाते हैं। छोटे (तरूण) पौधों में बीजपत्र लटक एवं मुरझा जाते हैं।
- निचली पत्तियों का पीला पड़ना और पौधों का वृध्दिरोध।
- दारू (जाइलम) वाहिकाएं भूरी हो जाता है और वे विकृत हो जाती हैं।
- पर्णकों के किनारे नीचे एवं भीतर की ओर मुड़ जाते हैं।
- मृदा के निकट तना (डंठल) हलका सा फूला हुआ एवं भंगुर हो जाता है।
- भीतरी काष्ठीय तना ऊतक प्राय: विवर्णित हो जाता है और वह नीबू के समान भूरा से लेकर नारंगी भूरा रंग में बदल जाता है।
- बाहरी रूप से मूलतंत्र स्वस्थ प्रतीत होता है, फिर भी लम्बी अवधियों तक म्लानिग्रस्त पौधों पर द्वितीयक मूल विगलन होने की सम्भावना होती है। अंत में म्लानिग्रस्त पौधे मर सकते हैं।
फ्यूजेरियम म्लानि के लक्षण प्रर्दशित करता मृदा का पौधा फ्यूजेरियम म्लानि प्रभावित खेत का दृश्य नियंत्रण के उपाय:
- बुरी तरह से रोग प्रभावित क्षेत्रों में अगेती बोआई मत कीजिए।
- फसल-चक्र अपनाइए
- रोगग्रस्त पौधों की जड़ों का निष्कासन, जो निवेश द्रव्य की मात्रा घटाती है।
- ग्रीष्मकाल में गहरी जुताई।
30 मिनट तक 3 ग्राम/कि.ग्रा. बीज की दर से थायरम या 1 प्रतिवर्ष बाविस्टिन विलयन से बीजोपचार।
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