Introduction
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भारतीय कृषि में बहुफसली खेती एक विशाल कार्यक्रम है | अनुकूल परिस्थिति में गेहूँ की खेती करना सरल काम है परन्तु प्रतिकूल परिस्थितियों में गेहूँ की खेती करना बड़ा काठीन है | बर्तमान में जो प्रतिकूल परिस्थितियाँ आ रही हैं | या आने वाली है उसके प्रति किसानो को सजग रहना चाहिए| इसके पहले खेती पर शोध कार्य करने वाले उन वैज्ञानिको के सामने यह चुनौती है की विश्व स्तरीय प्रतिकूलता (जसमें तापक्रम का लगातार बढना, मौसम का समय से साथ न देना, वर्षा का समय से न होना सिचाई के साधनों में नहरों में पानी की अनुपलब्धता, ट्यूबबेल अथवा बोरबेल के जल स्तर में दिनों दिन गिरावट आदि सम्लित है) का ही विकल्प सामने आता है | एसी परिस्थिति में जैविक खेती, जो देशी खेती का एक उन्नत तरीका है | अतः गेहूँ की खेती करने का दूसरा विकल्प यही है जिसके लिए विशेष सावधानी बरतने की आवश्यकता है |सावधानियाँ: प्रतिकूल परिस्थितियों हेतु सावधानियाँ: १. गर्मी की जुताई अवश्य की जाय जिससे कीड़े मकोड़े मर जाए |२. खेत की मेड़बंदी कर वर्षा ऋतु में पानी का संचयन कीया जाए |३. प्रतिकूल परिस्थितियों में बुवाई से पूर्व भूमि शोधन तथा बीज शोधन अवश्य कर लिया जाय |४. जुताई सायं करके प्रात: पाटा पाटा लगाकर नमी को सुरक्षित रखा जाए |५. उर्वरको का कम और सामायिक प्रयोग किया जाए |६. जैव उर्वरको जैसे-गोबर कम्पोस्ट, वर्मी कम्पोस्ट, जीवाणु खाद, फसल अवशेष, फसल चक्र प्राकृतिक खनिज जिप्सम, हरी खाद का प्रयोग किया जाए ताकि नमी उपलब्धता बढ़ सके ७. प्रतिकूल वातावरण के अनुसार ही संस्तुति प्रजातियों का चयन करें जिनसे प्रतिकूलता जैसे अधिक गर्मी आदि के प्रति सहनशीलता हो तथा कहद एवं पानी की कम आवश्यकता हो |
८. टॉपड्रेसिंग वाले उर्वरको का पर्णीय छिडकाव करना जादा लाभदायक होता है |९. खेत में पानी लगने हेतु खेत में छोटी-छोटी क्यारियाँ बनाकर पानी लग्गाने से पानी की बचत होती है |
Varieties
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प्रतिकूल परिस्थितियों हेतु संस्तुत प्रजातियों एवं बुवाई का समय: १. सिंचित (चार पानी वाली प्रजातियाँ -समय से बुवाई (नवम्बर २५ तक) : के.-९१०७ एच.डी.-२४२८, डब्लू एवं -५८२ , डब्लू. एच. १४७, लोक-१, शताब्दी (के. ३०७), पी. बी. डब्लू. ५०२ २. सिंचित (तीन पानी) व मध्य में बुवाई - (नवम्बर २५ से १० दिसम्बर) : डब्लू. एच -१४७ यू. पी.-२३३८, एच. डी.२३२९, के.-९५३३, के.-९१६२, एन.डब्लू.-२०३६, पी. बी. डब्लू. -३७३, डी. बी. डब्लू.-१६ ३. सिंचित बिलम्ब से बुवाई -(१५ दिसम्बर से २५ दिसम्बर): अधिक तापमान पर पी. बी. डब्लू -३७३, के.-८०२०, के.-९४२३, एन. डब्लू.- १०१४, मालवीय-२३४ डी. वी. डब्लू.- १४, राज-३७६५, लोक -१ यू. पी.-२४२५४. असिंचित व सिमित सिंचाई ( एक या दो) : के -९६४४, एच.डी.-२८२८,के. ९३ ५१, के.-८०२७ ५. उसर सिंचित दशा : प्रसाद (के. ८४३४), के. आर. एल.-19
Field preparation
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खेत की तैयारी: गेहूँ की अच्छी पैदावार के लिए खेत की तैयारी करने के लिये एकबार मिट्टी पलटने वाले डिस्क हीरो तथा कम से अकम दो बार कल्टीवेटर का तथा एक बार रोटा वेटर का प्रयोग करें | प्रतेक जुताई के बाद पाटा अवश्य लगायें जिससे धेले टूट जाएँ और मिट्टी भुरभुरी होने के बाद बुव्वाई करें | भूमि शोधन के लिए मिट्टी परिक्षण के बाद आवश्यक तत्वों का प्रयोग करें तथा उसर भूमि में जिप्सम का प्रयोग लाभकारी रहेगा |
Seed & Sowing
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बुवाई की बिधियाँ: प्रतिकूल परिस्थिति जैसे- पानी की कमी तथा बढती गर्मी में बुवाई करने की लिए पंकित्यों में बुवाई देशी हल के पीछे अथवा सीडड्रिल से करें | यदि खाद बीज एक साथ बोना है तो फर्टी सीडड्रिल द्वारा दोनों का प्रयोग सनतुलित मात्रा में करना चाहिए | इसके अतरिक्त प्रतिकूल परिस्थिति में बुवाई जीरो टील या मदों पर बुवाई (फर्ब मैथड) काके गेहूँ उगाने से नाली मरन सिंचाई व अनली में खाद डालनी होती है | ततः पैदावार में विशेष अन्तर नही आता है |
बीज दर: प्रतिकूल परिस्थितियों में बीज की संस्तुत मात्रा में सवा गुना अर्थात १२५ किग्रा. बीज प्रति हेक्टेयर की दर से जमाव की सुनिश्चिताके लिए अवश्य डालें | बीज शोधन के लिए वेवस्टीन कार्बेन्डाजिम की दो ग्राम/ किग्रा. की दर से प्रयोग करके बोयें |
Nutrient management
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उर्वरकों का प्रयोग : विपरीत परिस्थितियों में उर्वरकों की अपेक्षाकृत कम मात्रा को प्रयोग किया जाए अर्थात ८० किग्रा. नत्रजन, ४० किग्रा. फास्फोरस और ३० किग्रा. पोटाश पर्याप्त होगी | जिसके लिए यूरिया सुपरफास्फेट तथा म्यूरेट और पोटाश उर्वरक के रप में प्रयोग की जाती है | यूरिया की अद्धी मात्रा तथा अन्य की पूरी मात्रा के साथ सल्फर / जिंक की ५ किग्रा. / प्रति हे. या दोनों २५ किग्रा. / प्रति हे. की दर से डाले | यूरिया की शेष मात्रा + सल्फर /जिंक का छिड़काव पानी में घोलकर करें तो ज्यादा लाभकर होगा |
सूक्ष्म तत्वों का प्रयोग: विपरीत परिस्थिति से बचने के लिए सूक्ष्म तटों पर विशेष ध्यान देना चाहिए | सोलह सूक्ष्म तत्वों में कार्बन, हाइड्रोजन, आक्सीजन हवा व पानी से मिल जाता है शेष सूक्ष्म तत्व जैविक उर्वरको के प्रयोग से पूरा हो जाता है |
Water management
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जल प्रबन्धन :
विपरीत परिस्थिति में पानी की आवश्यकता अधिक व कम अन्तराल पर पड़ती है | यदि तीन सिंचाइयों की सुविधा तो पहली सिंचाई ताजमूल अवस्था तथा दूसरी वाली निकलते समय तथा तीसरी दुग्धाअवस्था पर करनी चाहिए यदि दो सिंचाई की सुविधा हो तो पहली सिंचाई ताजमूल अवस्था पर तथा दूसरी दुग्धा अवस्था पर करनी चाहिए | मेड़ों पर बुवाई की गयी फसल में नालियों में सिमित पानी लगना लाभदायक रहता है |
Weed management
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फसल सुरक्षा: १. खरपतवार नियंत्रण: खरपतवारों का नियंत्रण अवश्य करें, यह पौधों के भोजन पानी को स्वयं प्रयोग कर पैदावार में कमी कर देती है | झिन तक हो सके साफ सुथरे बीज का प्रयोग करें, सड़ी जैविक कम्पोस्ट आदि का प्रयोग करें, शेष निकाई गुड़ाई द्वारा निय्न्तन कर लें | यदि यह सुविधा न हो तो चौड़ी पट्टी वाले कहर पतवारों हेतु २,४ डी. ८० प्रतिशत का ६२५ ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से ६००-८०० लीटर पानी में घोलकर ओट आने पर छिड़काव करना चाहिए | सकरी पट्टी वाले खरपतवारों हेतु आइसोप्रोटुरान ७५ प्रतिशत का १.० किग्रा./हे. की दर से ६००-८०० लीटर पानी में घोलकर पहली सिंचाई के बाद ओट आने पर छिड़काव करना चाहिए | यदि दोनों प्रकार के खरपतवार नासिको को मिलाकर को मिलाकर उसी प्रकार करना चाहिए |२. कीड़े मकोड़े की सुरक्षा के लिएसे सुरक्षा के लिए ट्राइकोडार्मा, मेडवैस्य, मेंटिस आदि के प्रयोग का लाभ मिलाता है दीमक से वाचाव के लिए खेत में नमी बराबर बनी रहे तो कम प्रकोप होता है | प्रकोप होने पर नीम का रस अथवा नीम का तेल का छिड़काव असरकारी होता है |
Harvesting & Threshing
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कटाई-मड़ाई: विपरीत परिस्थिति होने पर फसल की परिपक्वता पर विशेष ध्यान दें | फसल पकते ही बिना प्रतीक्षा किए काट लें और मड़ाई में बिलम्ब न करें |
भण्डारण: बदलते परिवेश में मौसम का कोई भरोसा न करके उपज को बुखारी में या बोरों में भरकर साफ सुथरे स्थान में संरक्षित करें यदि सुखी नीम की पत्ती का विछावान डाल दें तो रसायनों का प्रयोग नही करना पड़ेगा |