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पर्णच्छद अंगमारी : धान

पर्णच्छद अंगमारी

रोगकारी जीव : राइजोक्टोनिया सोलानी (थैनेटेफोरस कुकुमेरिस)

  • उच्च आर्द्रता एवं गर्म तापमान इस रोग के लिए अनुकूल होते है।
  • निकट रोपाई एंव भारी उर्वरीकरण की रोग के आपतन को बढ़ाने की प्रवृति होती है। 
  • पौधों के साथ संपर्क में विद्यमान स्क्लेरोशिया प्राथमिक संक्रमण का कारण होते हैं।

लक्षण :

  • अधिकत्तर पर्णच्छद पर चित्तियां या क्षतचिह्न पाए जाते है।
  • चित्तियॉ पहले खेतों मे जल रेखा के निकट प्रकट होती है। वे हरा-सा दीर्घ वृत्तीय या अण्डाकार और लगभग 1 से0मी0 लम्बी होती है और भूरे किनारों से युक्त धूसर-सी सफेद रंग की हो जाती हैं।
  • आर्द्र दशाओं के अंतर्गत कवक का कवकजाल एक दूसरे को छू रहे अन्य पर्णच्छदों एंव पर्णफलकों को संक्रमित करने के लिए ऊपर की ओर बढ़ सकता है।
  • उग्र संक्रमणों में पौधे की सारी पत्तियॉ अंगमारी से ग्रस्त हो जाती हैं।


Sheath blight

प्रबन्ध :

  • नाइट्रोजन ओर पौधों के बीज दूरी घटाइए।
  • कृष्णा, सी आर0 44-11 साकेत-1, पंकज, टी 141, पीटीबी 21, स्वर्णधन जैसे रोग सहिष्णु प्रजातियॉ उगाइए।







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