Submitted by akanksha on Tue, 23/02/2010 - 11:26
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पर्णच्छद अंगमारी
रोगकारी जीव : राइजोक्टोनिया सोलानी (थैनेटेफोरस कुकुमेरिस)
- उच्च आर्द्रता एवं गर्म तापमान इस रोग के लिए अनुकूल होते है।
- निकट रोपाई एंव भारी उर्वरीकरण की रोग के आपतन को बढ़ाने की प्रवृति होती है।
- पौधों के साथ संपर्क में विद्यमान स्क्लेरोशिया प्राथमिक संक्रमण का कारण होते हैं।
लक्षण :
- अधिकत्तर पर्णच्छद पर चित्तियां या क्षतचिह्न पाए जाते है।
- चित्तियॉ पहले खेतों मे जल रेखा के निकट प्रकट होती है। वे हरा-सा दीर्घ वृत्तीय या अण्डाकार और लगभग 1 से0मी0 लम्बी होती है और भूरे किनारों से युक्त धूसर-सी सफेद रंग की हो जाती हैं।
- आर्द्र दशाओं के अंतर्गत कवक का कवकजाल एक दूसरे को छू रहे अन्य पर्णच्छदों एंव पर्णफलकों को संक्रमित करने के लिए ऊपर की ओर बढ़ सकता है।
- उग्र संक्रमणों में पौधे की सारी पत्तियॉ अंगमारी से ग्रस्त हो जाती हैं।
प्रबन्ध :
- नाइट्रोजन ओर पौधों के बीज दूरी घटाइए।
- कृष्णा, सी आर0 44-11 साकेत-1, पंकज, टी 141, पीटीबी 21, स्वर्णधन जैसे रोग सहिष्णु प्रजातियॉ उगाइए।
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