Submitted by kanchannainwal1 on Tue, 02/02/2010 - 10:13
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नाइट्रोजन
नाइट्रोजन की कमी :
जन विशेष रूप से वानस्पतिक वृध्दि के पूर्वाध्द में दौरान नाइट्रोजन की कमी होती है। तो पंक्तियों का रंग फीके हरे से लेकर पीला हरा हो जाता है और बाद में वे बैजनी-लाल के होकर तेजी से सूख ताजी है। इस प्रकार गन्ना की उपज में पर्याप्त कमी हो जाती है।
नाइट्रोजन का अधिक्य :
- दोजियाँ का निकलना बढ़ जाता है।
- पत्तियाँ आकार में बढ़ जाती हैं।
- दोजियाँ निकलने की अवधि लम्बी हो जाती है।
- पुरानी एवं नई उपरिभूस्तारियाँ शीघ्रता से मर जाती है।
- नाइट्रोजन की दर मोटे तौर पर 120 से 130 कि.ग्रा./हैक्टेयर होती है जो उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में अधिक और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्र में कम हो सकती है।
- नाइट्रोजन का विभाजित प्रयोग एक बार में प्रयोग की अपेक्षा अच्छा परिणाम देते हैं। नाइट्रोजन उर्वरक का प्रयोग रोपाई के 120 दिनों के भीतर या 12 महीने की फसल के लिए मानसून के प्रारम्भ तक पूरा हो जाना चाहिए।
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