Submitted by akanksha on Tue, 23/02/2010 - 15:44
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तना विगलन :
रोगकारी जीव: हेल्मिन्थोस्पोरियम सिग्माइडियम, वैरा इरेग्युलट (लेप्टोस्फेरिया साल्विनिक या मैग्नापोर्थे साल्विकी)
- उच्च नाइट्रोजन स्तर तना विगलन बढ़ाते है परन्तु पोटेशियम अत्यधिक नाइट्रोजन के हानिकारक प्रभावों को घटाता है।
- फॉस्फोरस भी रोग को उत्तेजित करता है परन्तु कम प्रभाव के साथ।
- सिलिका रोग रोकता है
- तना वेधकों द्वारा ग्रस्त पौधों पर रोग का प्रकोप )आपतन (दो या तीन गुना अधिक होता है।
लक्षण :
- तना विगलन धान के पौधे की परवर्ती वृध्दि अवस्थाओं पर जल स्तर के निकट बाहरी पर्ण - छद पर छोटे, काले से अनियमित क्षतिचिह्नों के साथ प्रारंभ होता है।
- कवक भीतरी पर्णच्छद का वेधन करता हैं और अंत में पर्ण विगलन एवं स्क्लेरोशियम उत्पन्न होते है।
- कवक की आगे प्रगति पर तने पर संक्रमण उत्पन्न होता है।
- तने की एक या दो पोरियां सड़ कर टूट जाती है। और केवल बाह्यत्वचा एवं संहवन बंडल शेष बचता है।
- फटी हुई पोरियों के भीतर छोटे काले स्क्लेरोशियमी बिन्दु होते हैं।
प्रबन्ध :
- धान के ठुन्ठों एवं संक्रमित पुआल को जला दीजिए।
- खेतो को लगातार जल से भरा हुआ नहीं छोड़िए।
- सेरी राजा, लेम्ब बसाह, मचांग, रैमिनेड स्ट्रे, 3 बीपी आई -76 एवं होन्डुरावाला जैसी रोग प्रतिरोधी प्रजातियॉ उगाइए।
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