Submitted by akanksha on Tue, 23/02/2010 - 15:57
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टुंग्रो :
लक्षण :
- टुंग्रों धान के पौधों का विकास रोक देता है और पत्ती का रंग पीले या नारंबी रंगत में बदल जाता है।
- ग्रहणशील प्रजातियों में वृध्दिरोध उग्र होता है।
- संक्रमित पौधों में सामान्यत: स्वस्थ पौधें की अपेक्षा कुछ कम दोजियॉ निकलती है।
- प्राय: केवल ऊपरी हिस्सा विवर्णित हो जाता है, नई पत्तियॉ चितकबरी दिखाई दे सकती है। और पुरानी पत्तियों पर विभिन्न आकारों के मोरचेदार धब्बे दिखाई देते है।
- पीलापन पत्ती के सिरे से प्रारम्भ होता है और पर्णफलक तक फैल जाता है।
- रोग ग्रस्त पत्तियों में स्टार्च की अपेक्षाकृत अधिक मात्राएं होती है।
रोगवाहक और संचरण :
- मुख्य रोगवाहक हरा धान पाद फुदक नेफोएटेटिया विरेसेन्स ने निग्रोपिक्टस, ने. मार्वस एवं ने. मलयेनस हैं जबकि रेसिलिया डोर्सेलिस कम दर पर विशाणु संचरित करता है।
यह विषाणु मृदा पर विद्यमान अण्डों, बीजों द्वारा और यांत्रिक साधनो द्वारा संचारित नही होता है।
प्रबन्ध
- रोगग्रस्त पौधें को उखाडकर नष्ट कर दीजिए।
- आई आर-20, अन्नपूर्णा, इन्द्रा, विजया एवं अनामिका जैसी प्रतिरोधी प्रजातियों का प्रयोग कीजिए।
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