जनवरी के मुख्य खेती-बाडी कार्य
फसलोत्पादन
गेहू
* गेहू में दूसरी सिंचार्इ बोआर्इ के 40-45 दिन बाद कल्ले निकलते समय और तीसरी सिंचार्इ बोआर्इ के 60-65 दिन बाद गांठ बनने की अवस्था पर करें।
* बलुअर दोमट भूमि में नाइट्रोजन की शेष एक तिहार्इ मात्रा अर्थात 40 किग्रा नाइट्रोजन (88 किग्रा यूरिया) की टाप ड्रेसिंग दूसरी सिंचार्इ के बाद कर दें।
* देर से बोये गये गेहू में पहली सिंचार्इ बोआर्इ के 17-18 दिन बाद करें। बाद की सिंचाइयां 15-20 दिन के अन्तराल पर करनी चाहिए।
* भारी मृदा में प्रति हेक्टेयर 60 किग्रा नाइट्रोजन (132 किग्रा यूरिया) की टाप ड्रेसिंग पहली सिंचार्इ के 4-6 दिन बाद और बलुर्इ दोमट भूमि मे 40 किग्रा नाइट्रोजन (88 किग्रा यूरिया) की टाप ड्रेसिंग पहली सिंचार्इ पर और 40 किग्रा नाइट्रोजन (88 किग्रा यूरिया) की दूसरी टाप ड्रेसिंग दूसरी सिंचार्इ के बाद कर दें।
* गेहू की फसल को चूहों से बचाने के लिए जिंक फास्फाइड से बने चारे अथवा एल्यूमिनियम फास्फाइड की टिकिया का प्रयोग करें।
जैां
* जैां में दूसरी सिचार्इ बोआर्इ के 55-60 दिन बाद गांठ बनने की अवस्था पर करें।
चना
* हल्की दोमट मिटटी में फूल आने से पहले ही दूसरी सिंचार्इ कर दें।
* भारी भूमि में फूल आने के पहले एक सिंचार्इ ही पर्याप्त होती हैं।
* सिचार्इ के लगभग एक संप्ताह बाद ओट आने पर हल्की गुडार्इ करना लाभदायक होता हैं।
* फसल में झुलसा रोग की रोकथाम के लिए प्रति हेक्टेयर 2.0 किग्रा जिंक मैग्नीज कार्बामेंट को 800 लीटर पानी में धोलकर फूल आने से पूर्व व 10 दिन के अन्तराल पर दूसरा छिडकाव करें।मटर
* मटर में बुकनी रोग (पाउडरी मिल्डयू) जिसमें पतितयों तनों तथा फलियों पर सफेद चूर्ण सा फैल जाता है, की रोकथाम के लिए प्रति हेक्टेयर धुलनशील गंधक 3.0 किग्रा 800 लीटर पानी में धेा लकर 10-12 दिन के अन्तराल पर छिडकाव करें।
रार्इ-सरसों
* रार्इ-सरसों में दाना भरने की अवस्था में दूसरी सिंचार्इ करें।
* यदि फसल में झुलसा या सफेद गेरूर्इ रंग का रोग‚ का प्रकोप हो तो जिंक मैग्नीज कार्बामेंट 75 प्रतिशत की 2.0 किग्रा या जीनेब 75 प्रतिशत की 2.5 किग्रा मात्रा को 800 लीटर पानी में धोलकर छिडकाव करें।
* माहू कीट पत्ती, तना व फली सहित सम्पूर्ण पौधे से रस चूसता है। इसके नियंत्रण के लिए प्रति हेक्टेयर फास्फेमिडान 85 प्रतिशत के 250 मिलीलीटर मात्रा को 800 लीटर पानी में धेालकर छिडकाव करें।
* उक्त बीमारियों या माहू का प्रकोप एक साथ होने पर किसी एक फफूदनाशक व एक कीटनाशक को मिलाकर प्रयोग किया जा सकता हैं।शीतकालीन मक्का
* खेत में दूसरी निरार्इ-गुडार्इ, बोआर्इ के 40-45 दिन बाद करके खरपतवार निकाल दें।
* मक्का में दूसरी सिंचार्इ बोआर्इ के 55-60 दिन बाद व तीसरी सिंचार्इ बोआर्इ के 75-80 दिन बाद करनी चाहिए।
* नाइट्रोजन की 40 किग्रा मात्रा (88 किग्रा यूरिया) की टाप ड्रेसिंग जीरा निकलने के पूर्व करें। उर्वरक प्रयोग के समय खेत में पर्याप्त नमी होनी चाहिए।
* यदि भुटटे के रूप में प्रयोग करना हो तो रसायनों का प्रयोग न करें।शरदकालीन गन्ना
* आवश्यकतानुसार सिंचार्इ करते रहें।
* गन्ना को विभिन्न प्रकार के तनाछेदक कीटों से बचाने के लिए प्रति हेक्टेयर 30 किग्रा फ्यूराडान का प्रयोग करें।
* गन्ने के जिन खेतों में पेडी रखना हो तो उनमें या तो गन्ने की सूखी पतितयों की 5 सेंमी मोटी तह बिछा दें अथवा फसल काट लेने के पश्चात खरपतवार नियन्त्रण के लिए सिंचार्इ करके ओट आने पर गुडार्इ कर दें।बरसीम
* कटार्इ व सिंचार्इ 20-25 दिन के अन्तराल पर करें। प्रत्येक कटार्इ के बाद भी सिंचार्इ करें।जर्इ
* जर्इ में 20-25 दिन के अन्तराल पर सिंचार्इ करें।
* पहली कटार्इ बोआर्इ के 55 दिन बाद करें और फिर प्रति हेक्टेयर 20 किग्रा नाइट्रोजन (44 किग्रा यूरिया) की टाप ड्रेसिंग कर दें।सबिजयों की खेती
* आलू टमाटर तथा मिर्च में पिछेती झुलसा तथा माहू से बचाव हेतु मैंकोजेब 0.2 प्रतिशत के धेाल का छिडकाव करें।
* बीजोत्पादन हेतु आलू के तने की कटार्इ कर दें।
* मटर के फूल आते समय हल्की सिंचार्इ करें। आवश्यकतानुसार दूसरी सिंचार्इ फलियां बनते समय करनी चाहिए।
* मटर में बुकनी रोग के रोकथाम के लिए कैराथेन 600-700 मिलीलीटर या धुलनशील गंधक 2.0-2.5 किग्रा 600-700 लीटर पानी में धोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिडकाव कर दें।
* गोभीवर्गीय सबिजयों की फसल में सिंचार्इ, गुडार्इ तथा मिटटी चढाने का कार्य करें।
* पहले रोपे गये टमाटर में सिंचार्इ, निरार्इ -गुडार्इ व स्टेकिंग (सहारा देना) का कार्य करें।
* पिछले माह रोपी गर्इ टमाटर की उन्नत किस्मों में प्रति हेक्टेयर 40 किगा्र नाइट्रोजन(88 किग्रा यूरिया) व संकर असीमित बढवार वाली किस्मों के लिए 55-60 किग्रा नाइट्रोजन (120-130 किग्रा यूरिया) की प्रथम टाप ड्रेसिंग रोपार्इ के 20-25 दिन बाद करें।
* टमाटर की ग्रीष्मकालीन फसल के लिए रोपार्इ कर दें।
* टमाटर की रोपार्इ के समय उन्नत प्रजातियों के लिए प्रति हेक्टेयर 40 किग्रा नाइट्रोजन 50 किग्रा फास्फेट, 60-80 किग्रा पोटाश एंव जिकं व बोरान की कमी होने पर 20-25 किग्रा जिंक सल्फेट व 8-12 किग्रा बोरेक्स का प्रयोग करें। संकर असीमित बढवार वाली किस्मों के लिए उर्वरक की अन्य मात्रा के साथ नाइट्रोजन 55-60 किग्रा प्रयेाग करना चाहिए।
* टमाटर की ग्रीष्म ऋतु की फसल के लिए कम व अधिक बढने वाले, दोनों प्रकार की प्रजातियों की रोपार्इ 60×45 सेमीं पर करें।
* टमाटर में खरपतवार के नियन्त्रण के लिए प्रति हेक्टेयर स्टाम्प 1.0 किग्रा(सकिय तत्व) रोप ण के दो दिन बाद प्रयोग करना चाहिए।
* लहसुन की फसल में 15 दिन के अन्तराल पर सिंचार्इ तथा गुडार्इ करें।
* लहसुन में नाइट्रोजन की दूसरी व अनितम टाप ड्रेसिंग बाआर्इ के 60 दिन बाद प्रति हेक्टेयर 74 किग्रा यूरिया की दर से करनी चाहिए।
माह के दूसरे सप्ताह तक प्याज की रोपार्इ कर दें।
* पालक की पतितयाँ काटकर बाजार में भेजें। यदि पालक का बीज लेना हो तो पतितयाँ काटना बन्द कर दें। रोगी पौधों को उखाड दें तथा 25 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से खडी फसल में यूरिया की टाप ड्रेसिंग कर दें।
* जायद में मिर्च तथा भिण्डी की फसल के लिए खेत की तैयारी अभी से आरम्भ कर दें।
* कद्दूवर्गीय सबिजयों की तैयारी के समय प्रति हेक्टेयर 200-300 कु0 गोबर कम्पोस्ट की सडी खाद या 70-80 कु0 नादेप कम्पोस्ट भूमि में मिलाते हैं।
* बोआर्इ से पूर्व प्रति हेक्टयेर 16-17 किग्रा नाइट्रोजन, 25 किग्रा फास्फेट व 25 किग्रा पोटाश आपस में मिलाकर बोने वाली नालियों के स्थान पर डालकर मिटटी में मिला दें और थाले बनाकर उनमें 2-3 बीज की बोआर्इ करें।फलों की खेती
* बागों की निरार्इ- गुडार्इ एंव सफार्इ का कार्य करें।
* आम के नवरोपित एंव अमरूद, पपीता एंव लीची के बागों की सिचांर्इ करें।
* आम के भुनगा कीट से बचाव हेतु मोनोक्रोटोफास 0.04 प्रतिशत का छिडकाव करें।
* आंवला के बाग में गुडार्इ करें एंव थाले बनायें।
* आंवला के एक वर्ष के पौधे के लिए 10 किग्रा गोबरकम्पोस्ट खाद, 100 गा्रम नाइट्रोजन, 50 ग्राम फास्फेट व 75 ग्राम पोटाश देना आवश्यक होगा। 10 वर्ष या उससे ऊपर के पौधे में यह मात्रा बढकर 100 किग्रा गोबर कम्पोस्ट खाद, 1 किगा्र नाइट्रोजन, 500 ग्राम फास्फेट व 75 ग्राम पोटाश हो जायेगी। उक्त मात्रा से पूरा फास्फोरस, आधी नाइट्रोजन व आधी पोटाश की मात्रा का प्रयोग जनवरी माह से करें।
* अंगूर में कटार्इ-छटार्इ का कार्य पूरा कर लें।
* अंगुर में प्रथम वर्ष गोबरकम्पोस्ट खाद के अलावा 100 ग्राम नाइट्रोजन‚ 60 ग्राम फास्फेट व 80 ग्राम पोटाश प्रति पौधा आवश्यक होता हैं। 5 वर्ष या इससे ऊपर यह मात्रा बढकर 500 ग्राम नाइट्रोजन, 300 ग्राम फास्फे ट व 400 ग्राम पोटाश हो जाती है। फास्फोरस की सम्पूर्ण मात्रा तथा नाइट्रोजन व पोटश की आधी मात्रा कटार्इ-छँटार्इ के बाद जनवरी माह में दें।वानिकी
* पापलर की रोपार्इ 5×4 मीटर पर करें।
पुष्प व सगन्ध पौधे
* गुलाब में समय-समय पर सिंचार्इ एवं निरार्इ गुडा़र्इ करें तथा आवश्यकतानुसार बंडिंग व इसके जमीन में लगाने का कार्य कर लें।
* ग्लैडियोलस की मुरझार्इ हुर्इ टहनियों को निकाल दें तथा आवश्यकतानुसार सिंचार्इ करें।
* रजनीगंधा के बल्बों के रोपण हेतु क्यारियों में 45 सेंमी गहरी खुदार्इ करके 15 दिनों के लिए छोड़ दें।
* मेंथा के सकर्स की रापार्इ कर दें। एक हेक्टेयर के लिए 2.5-5.0 कुन्टल सकर्स आवश्यक होगा।
* एच.वार्इ.-77, कासी व गोमती मेंथा की उपयुक्त प्रजातियाँ हैं।
* मेंथा में प्रति हेक्टेयर 100-150 कुन्तल गोबर की खाद, 40-50 किग्रा नाइट्रोजन ‚ 50-60 किग्रा फास्फेट एवं 40-45 किग्रा पोटाश अनितम जुतार्इ के समय भूमि में मिला दें।
* मेंथा की रापार्इ 45-60 सेंमी दूरी पर बनी लाइनों में, 2-3 सेंमी गहरार्इ में करते हैं।पशुपालनदुग्ध विकास
* पशुओं को ठंड से बचायें। उन्हें टाट बोरे से ढकें। पशुशाला में जलती आग न छोड़ें।
* पशुशाला में बिछाली को सूखा रखें।
* पशुओं के भोजन में दाने की मात्रा बढ़ा दें।
* गन्ने के अगोलें के साथ बरसीम का चारा मिलाकर पशुओं को दें।
* पशुओं में लीवर फ्लूक नियंत्रण हेतु कृमिनाशक दवा पिलवायें।
* खुरपका, मँुहपका रोग से बचाव के लिए टीका अवश्य लगावायें।
* पशुओं के बच्चों को जूँ से बचाने के लिए दवा लगायें।
* बांझपन की चिकित्सा तथा गर्भ परीक्षण करायें।
* सदीं में थन चिटक जातें हैं। अत: दुहने के बाद जीवाणुनाशक मलहम मक्खन लगा दें।मुर्गीपालन
* अण्डे देने वाली मुर्गियों को लेयर फीड दें।
* सीप का चूरा दें।
* ब्रायलर के लिए एक दिन के चूजे पालें।
* चूजों को पर्याप्त रोशनी तथा गर्मी दें।
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