Submitted by deepalitewari on Sat, 21/11/2009 - 13:01
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चूर्णिल फफँदी
रोगकारी जीव - एरीसाइफी सिकोरेसिएनम
- इस रोग का प्रकोप शुष्क मौसम से सम्बन्धित होता है।
- यह रोग फरवरी से अप्रैल तक फसल को प्रभावित करता है।
- रोग मौसम में देरी से उत्पन्न होता है और फली रचना के समय पर अधिकतम तीव्रता तक पहुंच जाता है।
- अगेती कल्टीवार रोग से बच जाते हैं।
लक्षण:
- यह पहले पत्तियों पर आक्रमण करता है और उन पर हलकी, थोड़ी सी विवर्णित चित्तियाँ उत्पन्न करता है जिससे धूसरी चूर्णी कवक वृध्दि एवं बीजाणु निकलकर, तना एवं पत्ती पर फैल जाते हैं।
- पत्तियाँ पीली पड़ जाती है और मर जाती हैं।
- फल नहीं लगते हैं या अधिक छोटे ही बने रहते हैं।
- यह निष्पत्रण उत्पन्न करता है।
- बाद की अवस्थाओं में चूर्णी वृध्दि फलों को ढक लेती है और उन्हें विपणन के लिए अनुपयुक्त बना देती है।
मटर के पौधें की पत्तियाँ जिन पर चूर्णिल फफूँदी के लक्षण दिखाई दे रहे हैं।
चूर्णिल फफूँदी से प्रभावित मटर की प्रजातियाँ
नियंत्रण के उपाय :
- देर से बोआई मत कीजिए।
- फसल कटाई के बाद खेत में बचे हुए पौधों को एकत्र करके जला दीजिए।
- निलंबनशील गंधक, जैसे सल्फेक्स एवं थायोविट का सूत्रण का 3 कि.ग्रा./हैक्टेयर की दर से प्रयोग कीजिए।
- 10 दिनों के अन्तराल पर तीन बार एलोसाल 8 डब्लू0 पी0 का प्रयोग कीजिए।
- कैराथेन (डाइनोकैप - 0.05%), डिकार (मैनोकैप), मोसोसाइड (बिनापैक्रिल) एवं मोरेस्टान (क्विनोमेथियोनेट) का प्रयोग कीजिए।
- 0.03% कैलिक्सीन के बाद कैराथेनएवं (0.2%) एवं बाविस्टिन (100 पी0पी0एम0) का प्रयोग कीजिए।
- प्रतिरोधी प्रजातियाँ जैसे जे0पी0-83, पी0एस0एम0-5, जे0पी0-4, आर्किल एवं जे0आर0एस0-14 उगाइए।
- चूर्णिल फफँदी प्रतिरोधी कल्टीवार विकसित करने की आवश्यकता है क्योंकि यह रोग सामान्यत: पाया जाता है। उनमें से कुछ जैसे पी-185 एवं 6578 इर्वीनिया पालिगोनती के प्रति रोधक्षम है और ईसी 33866 25% संक्रमित पत्तियों से युक्त साधारण प्रतिरोधी है।
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