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गेहूँ की खेती

 

प्रदेश में जीरों टिलेज द्वारा गेहूँ  की खेती की उन्नत विधियॉ:

प्रदेश के धान गेहूँ फसल चक्र में विशेषतौर पर जहॉ गेहूँ  की बुवाई में विलम्ब हो जाता है। गेहूँ की खेती जीरों टिलेज विधि द्वारा करना लाभकारी पाया गया है। इस विधि में गेहूँ की बुवाई बिना खेत की तैयारी किए एक विशेष मशीन (जीरो टिलेज मशीन) द्वारा की जाती है।

लाभ:

इस विधि में निम्न लाभ पाए गए है। 

१. गेहूँ की खेती मे लागत की कमी (लगभग २००० रूपया प्रति है।)

२. गेहूँ की बुवाई ७-१० दिन जल्द होने से उपज मे वृद्घि।

३. पौधों की उचित संख्या तथा उर्वरक का श्रेष्ठ प्रयोग सम्भव हो पाता है।

४. पहली सिंचाई में पानी न लगने के कारण फसल बढ़ाकर में रूकावट की समस्या नही रहती है।

५. गेहूँ के मुख्य खरपतवार गेहूँसा के प्रकोप में कमी हो जाती है।

६. निचली भूमि नहर के किनारे की भूमि एवं ईट भट्‌टे की जमीन में इस मशीन द्वारा समय से बुवाई की जा सकती है।

 विधि:

जीरों टिलेज विधि से बुवाई करते समय निम्न बातों का घ्यान रखना आवश्यक है।

७. बुवाई के समय खेत में पर्याप्त नमी होनी चाहिये। यदि आवश्यकता हो तो धान काटने के एक सप्ताह पहले सिंचाई कर देनी चाहिए। धान काटने के तुरन्त बाद बुवाई करनी चाहिये।

८. बीज दर १२५ किग्रा० प्रति हे. रखनी चाहियें।

९. दानेदार उर्वरक (एन.पी.के.) का प्रयोग करना चाहिये।

१०. पहली सिंचाई बुवाई के १५ दिन बाद करनी चाहिये।

११. खरपतवारों के नियंत्रण हेंतु तृणनाशी रसायनों का प्रयोग करना चाहिये।

१२. भूमि समतल होना चाहिये।

नोट:  गेहूँ की फसल कटाई के पश्चात फसल अवशेष को न जलाया जाये |