Submitted by kanchannainwal1 on Fri, 08/01/2010 - 16:40
Posted in
गन्ने का वर्गीकरण:
सैकेरम वंश की पाँच महत्वपूर्ण जातियाँ हैं जो निम्नलिखित हैं:
सैकेरम आफिसिनेरम
- यह मूल कृष्ट जातियों में से एक है। यह सुक्रोस से भरपूर होता है।
- इसके वृंत कम रेशा अंश के साथ ओजपूर्ण एवं लंबे होते हैं। होलैण्ड वासी वैज्ञानिक इन्हें ''उत्कृष्ट गन्ना'' कहते हैं। यह 2x = 80 गुणसूत्र रखता है। इस समय इन्हें चूसने के प्रयोग से उगाया जाता है।
सैकेरम साइनेन्स
- इसे चीनी गन्ना के रूप में जाना जाता है। इसका उदभव स्थान मध्य एवं दक्षिण पूर्व चीन है।
- यह लंबी पोरियों से युक्त पतला वृंत और लंबी एवं संकुचित पत्तियों से युक्त गन्ना है।
- इसमें सुक्रोस अंश एवं शुध्दता कम होती है और रेशा एवं स्टार्च अधिक होता है।
- गुणसूत्र संख्या 2x = 111 से 120 है। इस जाति के अन्तर्गत एक उल्लेखनीय प्रजाति ''ऊबा'' है जिसकी खेती कई देषों में की जाती है।
- इस समय इस जाति को व्यापारिक खेती के लिए अनुपर्युक्त माना जाता है।
सैकेरम बार्बेरी
- यह जाति उपोष्ण कटिबंधीय भारत का मूल गन्ना है।
- इसे 'भारतीय जाति' माना जाता है।
- उपोष्ण कटिबंधीय भारत में गुड़ एवं खाड़सारी चीनी का निर्माण करने के लिए इसकी बड़े पैमाने पर खेती की जाती है।
- यह अधिक मजबूत एवं रोग प्रतिरोधी जाति है और इसके गन्नों में अधिक शर्करा एवं रेशा अंश होता है। वे पतले वृंत वाले होते हैं।
- इस जाति के क्लोन उच्च एवं निम्न तापमानों, समस्या ग्रस्त मृदाओं और जलाक्रांत दशाओं के लिए अधिक सहिष्णु है।
सैकेरम रोबस्टम
- यह जाति न्यू गिनी द्वीप समूह में खोजी गई थी। इस जाति के गन्नों के वृंत लंबे, मोटे एवं बढ़ने में ओजपूर्ण होते हैं।
- यह रेशा से भरपूर है और अपर्याप्त शर्करा अंश रखती है। गुणसूत्र संख्या 2x = 60 एवं 80 है।
- यह जंगली जाति है और कृषि उत्पादन के लिए अनुपयुक्त है।
सैकेरम स्पान्टेनियम
- इसे भी 'जंगली गन्ने' के रूप में जाना जाता है। इसकी प्रजातियाँ गुणसूत्रों की परिवर्तनशील संख्या (2x = 40 से 128) रखती है। इस जाति की आकारिकी में पर्याप्त परिवर्तनशीलता देखी गई है।
- सामान्यत: इसका वृंत पतला एवं छोटा होता है। और पत्तियाँ संकुचित (तंग) एवं कठोर होती हैं।
- पौधा अधिक मजबूत और अधिकांष रोगों का प्रतिरोधी होता है।
- यह जाति शर्करा (चीनी) उत्पादन के लिए उपयोगी नहीं है क्योंकि शर्करा अंश बहुत कम होता है।
- यह जाति विशेष रूप से रोग एवं प्रतिबल प्रतिरोधी प्ररूप प्राप्त करने के लिए संकर प्रजातियाँ विकसित करने के लिए उपयोगी है।
- Login to post comments
- 30304 reads