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किसानों ने निकाली मरोड़ीये क़ी मरोड़!!

किसानों ने निकाली मरोड़ीये क़ी मरोड़!!

"बी.टी.कपास में मरोड़ीया रहें जा गा। मनै के कह सै?" कहना सै जिला जींद में निडानी गावं के उर्जावान किसान एवं कुशल तरखान श्री आशीन का। पिछले साल मिले कपास के अप्रत्याशित ऊँचे भावों से वशीभूत आशीन ने भी इस साल जिन्दगी में पहली बार बी.टी.कपास की बिजाई कर बेमतलब भोई मोल ले ली। जमीन कमजोर, पानी खराब और बीज बिगड़ैल। कित पार पड़े थी? तीन बार बिजाई करनी पड़ी। तीन हज़ार रुपये का तो बीज ही आया तीन पैकट। किराया भाड़ा व् बुवाई के लगे सो अलग। इस साल भी अच्छे भाव की आश ने आशीन के हौंसले पस्त नही होने दिए। सपने में ग्याभन आशीन आखिरकार अपने इस एक एकड़ कपास के खेत में कपास के 2054 पौधे उगा पाया। तीन पत्तिया ना सही पौधों के चार पत्तिया होते ही नलाई भी शुरू करदी। इसकी कपास में सफ़ेद-मक्खी नाम-मात्र की होने के बावजूद भी देखते-देखते ही 70% पौधों पर पत्ते जरुरत से ज्यादा हरे होने लगे, इन पत्तों की छोटी-छोटी नसें मोटी होने लगी, पत्तियां ऊपर की तरफ मुड़कर कप जैसी दिखाई देने लगी और कहीं-कहीं इन पत्तियों की निचली सतह पर पत्तिनुमा बढ़वार भी दिखाए देने लगी। कृषि ज्ञान केंद्र के विशेषज्ञों से संपर्क किया तो मालूम हुआ कि इस खेत में तो कपास की फसल आरंभिक काल में ही पत्ता-मरोड़ रोग से ग्रसित हो गयी है। अब तो इसमें फूल, फल व् टिंडे लगने मुश्किल हैं। दो-चार पौधे प्रभावित होते तो उन्हें उखाड़ कर जलाया या जमीन में दबाया जा सकता था और इस रोग को फैलने से रोका जा सकता था। इतना ज्यादा प्रकोप होने पर तो कपास के इस खेत को जोत कर, बाजरा की बिजाई करने में ही भलाई है। इतना सुनते ही आशीन की तो पैरों नीचे की जमीन ही खिसक गयी।
मरोड़ीये का थपड़ाया आशीन अगले ही मंगलवार को चितंग नहर के राजबाह़ा न.3 की टेल पर लगने वाली किसान खेत पाठशाला में पहुँच गया। कीड़े पहचानने, गिनने व् नोट करने में क्यूकर मन लागै था। मौका सा देख कर मनबीर को न्यारा टाल लिया अर अपनी कपास की फसल में आये असाध्य रोग "मरोड़ीये" का इलाज पुछ्न लगा. मनबीर कौनसा भला था, हं कर कहन लगा, " आशीन, मरोड़ चाहे मानस में हो, डांगर में हो या पौधे में। ना तो टूटन की होती अर ना आपां नै इसे तोड़ने की कौशिश करनी चाहिए। फसल को खुराक दे दे जै कुछ बात बन जा तो। एक लीटर पानी में 5.0 ग्रा जिंक सल्फेट, 25 ग्रा यूरिया व् 25 ग्रा डी.ऐ.पी.के हिसाब से घोल बनाकर छिड़काव करते रहना। हर 10 वें या 12 वें दिन फिर से करते रहना। और कोई पंगा मोल मत लेना।"
हरियाणे में फंसा होया मानस सबके नुख्से आजमा लिया करै। आशीन भी अपवाद न था। पहले छिड़काव के तीसरे दिन से ही आशीन को उम्मीद बंधने लगी। एक के बाद एक, पूरे पांच स्प्रे ठोक दिए। पहली चुगाई में छ: मन कपास उतरी। पिछले सप्ताह कृषि विज्ञानं केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिकों डा.आर.डी.कौशिक व् डा.यशपाल मलिक ने भी इस खेत का दौरा किया था। मरोड़ीया से भयंकर रूप में ग्रसित पौधों को फलों से लद-पद देखर कर दोनों कृषि वैज्ञानिक भी हैरान थे। "कृषि विज्ञान की प्रस्थापनाओं के विरुद्ध आपकी इस जमीनी हकीक को इस दुनियां में कौन वैज्ञानिक मानेगा।", डा.मलिक के मुहं से निकला।
" डा.साहिब हमने किसी को मनाने अर मनवाने की कहाँ जरुरत पड़ेगी। म्हारा तो काम पैदावार से चल जायेगा और वो होने जा रही है। वो आप सामने देख ही रहे हो।" उपस्थित किसानों में से एक ने जवाब दिया।
"इन प्रकोपित पौधों पर टिंडों की गिनती करो तथा कुछ सामान्य पौधों पर भी।", डा.कौशिक ने सुझाव दिया।
आशीन ने तुरंत बताना शुरू किया की सर जी, इस खेत में 2054 पौधें हैं। पौधों पर कम से कम 19 टिंडे व् ज्यादा से ज्यादा 197 टिंडे हैं। औसत निकलती है ६९.3 टिंडे प्रति पौधा। पांच फोहों का वजन 22 ग्राम यानि की 4.4 ग्राम प्रति फोहा। इस हिसाब से तो 16-17 मन कपास होने का अनुमान है।", उत्साहित आशीन रके नही रुक रहा था।
मनबीर ने आगे बात बढाते हुए इसी गावं के कृष्ण की भी सफल गाथा सबको सुनाई। कृष्ण के खेत में भी फसल की शुरुवात में ही मरोड़ीया आ गया था। उसने भी यही किया जो आशीन ने किया और उसके खेत में भी 1507 पौधों से 18-20 मन की कपास होने की उम्मीद है। पौधों के हिसाब से तो इस पैदावार को ठीक-ठाक कहा जा सकता है।

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