Introduction
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भारत वर्ष में गठिया गेहूँ की खेती लगभग २५ लाख हे. में की जाती है | मुख्यत: इसमें मध्य तथा दक्षिण भारत के उष्ण जल्वायुविक क्षेत्र आते है | भारत वर्ष में गठिया गेहूँ ट्रीटिकम परिवार में दुसरे स्तर का महत्वपूर्ण गेहूँ है गेहूँ को तीन उप परिवारों (एस्टीवम, ड्यूरम और कोकम) के कठिया गेहूँ के क्षेत्रफल में एवं उत्पादन में द्वितीय स्थान प्राप्त फसल है | भारत में इसकी खेती बहुत पुरानी है | पहले यह उत्तर पश्चिम भारत के पंजाब में अधिक उगाया जाता था फिर दक्षिण भारत के कर्नाटक तत्पश्चात गुजरात में गठिया बाढ़ क्षेत्र में अब पूर्व से पश्चिमी बंगाल आदि में फैला हुआ है |
कठिया गेहूँ की खेती प्राय: असिंचित दशा में की जाती थी जिससे पैदावार भी अनिश्चित रहती थी तथा प्रजातियाँ लम्बी बिमारी से ग्रसित, कम उर्वरक क्षमता व सिमित क्षेत्र में उगाई जाती थी | आज प्रकृति ने मध्य भारत को गठिया गेहूँ की अपार क्षमता प्रदान की है | वहाँ का मालवांचल, गुजरात का सौ राष्ट्र और काठियावाड़ राजस्थान का कोटा, मालवाड़ तथा उदयपुर उत्तर प्रदेश का बुन्देलखण्ड में गुणवत्ता युक्त नियतिक गेहूँ उगाया जाता है | गठिया गेहूँ आद्योगिक उपयोग के लिए अच्छा माना जाता है इससे बनने वाले सिमोंलिना (सूंजी/रवा) से शीघ्र पकने वाले ब्यंजन जैसे पिज्जा, स्पेघेटी, सेवेइयाँ, नुडल, वरमिसेलीआदि बनाये जाते है | इसमें रोगरोधी क्षमता अधिक होने के कारणइसके निर्यात की अधिक सम्भावाना रहती है |
कठिया गेहूँ की खेती से लाभ: १. कम सिंचाई: कठिया गेहूँ की किस्में में सूखा प्रतिरोधी क्षमता अधिक होती है | इसलिये ३ सिंचाई ही पर्याप्त होती है जिससे ४५ से ५० कु./ हे. पैदावार हो जाती है २. अधिक उतपादन: सिंचाई की दशा में कठिया प्रजातियों औसत ५०-६० कु. / हे. पैदावार तथा असिंचित व अर्ध सिंचित दशा में इसका उत्पादन औसत ३०-३५ कु./ हे. अवश्य होता है ३. पोषक तत्वों की प्रचुरता: कठिया गेहूँ से खाद्यान्न सुरक्षा तो मिली परन्तु पोषक तत्वों में शरबती (एस्टीम)की अपेक्षा प्रोटीन १.५-२.० प्रतिशत अधिक विटामिन 'ए' की अधिकता बीटा कैरोटिन एवं ग्लूटीन पर्याप्त मात्र में पायी जाती है |४. फसल सुरक्षा: कठिया गेहूँ में गेरुई रोग या रतुआ जैसी महामारी का प्रकोप तापक्रम की अनुकूलतानुसार कम या अधिक होता है | नवीन प्रजातियों को उगाकर इनका प्रकोप कम किया जा सकता है |
Varieties
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प्रजातियाँ : १. सिंचित दशा हेतु: पी.बी. डब्लू.-३४, पी. बी. डब्लू.-२१५, पी. बी. डब्लू.-२२३, राज-१५५५, डब्लू. एच. ८९६, एच आइ.८४९८, एच. आई.-८३८१, जी. डब्लू. १९०, जी. डब्लू.-२७३ |२. असिंचित दशा हेतु :
आरनेज ९-३०-१, मेघदूत, विजगा येलो, ए. २०६, मैक्स ९, मैमा-१९६७, जे. यू.-१२ जी. डब्लू. -२, एच. डी. ४६७२ सुजाता |
Seed & Sowing
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बुवाई: असिंचित दशा में कठिया गेहूँ की बुवाई अक्टूबर माह के अंतिम सप्ताह से नवम्बर के प्रथम सप्ताह तक अवश्य कर देनी चाहिए | सिंचित अवस्था में नवम्बर का दूसरा सप्ताह सर्वोत्तम समय होता है |
Nutrient management
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उर्वरकों की मात्रा: संतुलित उर्वरक एवं खाद का प्रयोग दानो के श्रेष्ठ गुण तथा अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए अति आवश्यक है | अत: १२० किग्रा. नत्रजन (आधी मात्रा जुताई के साथ) ६० किग्रा. फास्फोरस ३० किग्रा. पोटाश प्रति हेक्टेयर सिंचित दशा में पर्याप्त है | इसमे नत्रजन की आधी मात्रा पहली सिंचाई के बाद टाप ड्रेसिंग के रूप में प्रयोग करना चाहिए | असिंचित दशा में ६०:३०:१५ तथा अर्ध असिंचित दशा में ८०:४०:२० के अनुपात में नत्रजन, फास्फोरस तथा पोटाश का प्रयोग करना चाहिए |
Water management
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सिंचाई: सिंचाई सुबिधा अनुसार करनी चाहिए |अर्धसिंचित दशा में कठिया गेहूँ की १-२ सिंचाई, सिंचित दशा में तीन सिंचाई पर्याप्त होती है पहली सिंचाई बुवाई के २५-३० दिन ताजमूल अवस्था दूसरी सिंचाई बुवाई के ६०-७० दिन पर दुग्धा अवस्था तीसरी सिंचाई बुवाई के ९०-१०० दिन पर दाने पड़ते समय
Weed management
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फसल सुरक्षा: सामान्य गेहूँ की भांति खरपतवारनाशी एवं रोग अवरोधी रसायनों का प्रयोग करना चाहिए |
Harvesting & Threshing
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कटाई एवं मड़ाई: कठिया गेहूँ के झड़ने की संभावना रहती है अत: पक जाने पर सीघ्र कटाई तथा मड़ाई कर लेना चाहिए |
कठिया गेहूँ की सफल खेती के लिए मुख्य बिंदु : १. भरपूर उपज के लिए समय पर बुवाई करना आवश्यक है | २. असिंचित तथा अर्धसिंचित दशा में बुवाई के समय खेत में नमी का होना अति आवश्यक है | ३. कठिया गेहूँ की उन्नतशील प्रजातियों का ही चयन करके संस्तुत बीज विक्रय केद्रों से लेकर बोना चाहिए | ४. चमकदार दानो के लिए पकने के समय आद्रता की कमी होनी चाहिए | ५. रोग तथा कित नाशकों का कम से कम प्रयोग करना चाहिए जिससे दानो की गुणवत्ता पर असर न आये |