Submitted by gpsingh on Tue, 09/02/2010 - 11:04
उत्पत्ति
- गेहूँ पहले से ही एक महत्वपूर्ण फसल थी जब से इसके पहले इतिहास का अभिलेख मिला था। इसकी उत्पत्तिा का सुनिष्चित समय एवं स्थान के बारे में सही सूचना उपलब्ध नहीं है। खेती की जाने वाली (कृश्ट) गेहूँ के प्रजनक माने जाने वाले जंगली गेहूँ एवं घासों का वितरण इस विष्वास की पुश्टि करता है कि गेहूँ दक्षिण-पूर्वी एषिया में उत्पन्न हुआ था। प्रागैतिहासिक काल में यूनान, फारस, टर्की एवं मिस्र में गेहूँ की कुछ जातियों की खेती की जाती थी जबकि अन्य जातियों की खेती की षुरूआत अधिक हाल में हो सकती है। भारत में, मोहन-जोदड़ो की खुदाइयों से प्राप्त प्रमाण सूचित करते हैं कि यहाँ गेहूँ की खेती 5000 वर्शों से अधिक समय पहले प्रारंभ हुई थी।
- आधुनिक गेहूँ की उत्पत्तिा महत्वपूर्ण है क्योंकि यह एक चिरप्रतिश्ठित उदाहरण है कि प्रकृति में कैसी घनिश्ठ रूप से संबंधित जातियाँ बहुगुणित श्रृंखला में संयुक्त हो सकती है। खेती किए जाने वाले गेहूँ से संबंधित ट्रिटिकम वंष की जातियों और उनके निकट संबंधियों को क्रमष: गुणसूत्र संख्या 2n = 14, 28 एवं 42 से युक्त गुणित, चतुर्गुणित एवं शड्गुणित समूहों में विभाजित किया जा सकता है। चतुर्गुणित समूह जीनोमी सूत्रों द्वारा यथासूचित दो द्विगुणित जातियों से उत्पन्न हुआ है। शड्गुणित जातियाँ चतुर्गुणित जाति के साथ तीसरे जीनोम की वृध्दि द्वारा उत्पन्न होती है। शड्गुणित गेहूँ के 21 गुणसूत्रों को सात समजात (होमोलोगस) समूहों में बाँटा गया है और प्रत्येक समजात समूह में ए, बी एवं डी जीनोमों में प्रत्येक से आंषिक रूप से समजात गुणसूत्र होता है।
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