आम की सघन बागवानी
आम, भारत का सर्वाक लोकप्रिय फल है। हमारे देश में आम को इसके विशिष्ट गुणों के कारण 'फलों का राजा कहा जाता है। इस फल में स्वस्थ्य वृद्धि के बहुत से आवश्यक तत्व जैसे-विटामिन ए, बी, सी और बहुत से लवण भी काफी मात्रा में पाये जाते हैं। इसका उपयोग जैम, जेली, अचार, आमचूर, अमावट इत्यादि बनाने में किया जाता है।
सस्य क्रियाओं के उचित प्रबंèान से आम की सघन बागवानी लगायी जा सकती है। इसके लिए बागवान को सर्वप्रथम रूपरेखा बना लेना चाहिए कि इसके अंतर्गत कितने क्षेत्रफल में बागवानी करनी है, पानी का सुविèाा है या नहीं, सड़क से कितना दूर है, कौन-सी किस्म लगानी है इत्यादि।
भूमि की तैयारी एवं रेखांकन : आम की बागवानी करीब-करीब सभी प्रकार की मिटटी में की जा सकती है परन्तु कंकरीली, पथरीली, बलुर्इ, क्षारीय एवं जल जमाव वाली भूमि का चयन नहीं करना चाहिए। इसके लिए दोमट एवं गहरी भूमि जिसका पी.एच मान 5.5 से 7.5 के मèय हो उपयुक्त मानी जाती है। अप्रैल-मर्इ में खेत की गहरी जुतार्इ कर 10-15 दिन के लिए छोड़ देते हैं। इससे खेत का कीड़ा-मकोड़ा मर जाता है। फिर खेत को समतल करके पौèाा-से-पौèाा एवं कतार-से-कतार की दूरी के अनुसार रेखांकन कर लेना चाहिए। आम्रपाली किस्म को छोड़कर सभी किस्मों के लिए रेखांकन 5 × 5 मीटर कर करना चाहिए। आम्रपाली में 2.5 × 2.5 मीटर पर रेखांकन करना चहिए। रेखांकन के बाद गडढे की खुदार्इ कर मानूसन से पहले 1.5 किग्रा सिंगल सुपर फास्फेट, 20 मिलीग्राम क्लोरोपाइरीफास एवं 30-40 किलोग्राम गोबर की खाद मिटटी में मिलाकर गडढे को भर देना चाहिए।
पौèा रोपण : उच्च गुणवत्ता वाले पौèो को जुलार्इ के मèय तक तैयार गडढों में सावèाानीपूर्वक लगा देते हैं एवं उसके चारों तरफ के मिटटी को अच्छी तरह दबा देते हैं। पौèाा लगाने के तुरंत बाद सिंचार्इ करना चाहिए।
सिंचार्इ : शुरू के दो वषो± तक पौèाों में मानसून आने से पहले प्रत्येक 5-6 दिनों पर सिंचार्इ करना चाहिए।
कटार्इ-छँटार्इ : सघन बागवानी के अंतर्गत प्रारंभिक कटार्इ-छंटार्इ करना अतयन्त आवश्यक होता है। इसके लिए पौèाा को जमीन से 60-70 सेमी पर शीर्ष कटिंग की जानी चाहिए। यह कार्य अक्टूबर-दिसम्बर तक करना चाहिए। कटिंग के फलस्वरूप मार्च अप्रैल में नए प्ररोह उत्पन्न होते हैं जिसमें से चार प्ररोहों को चारों दिशाओं में रखकर सभी को हटा देते हैं। यह कार्य मर्इ महीना में किया पद्धति जाता है। फिर इन चार प्ररोहों का अक्टूबर-नवम्बर में कटार्इ किया जता है। इस तरह कटार्इ-छँटार्इ करके पेड़ के चारों तरफ 3-4 शाखाओं को बढ़ने देते हैं फिर इन्हीं शाखाओं से पौèो का आकार छतरीनुमा करने के लिए उचित कटार्इ-छँटार्इ निरंतर करते रहना चाहिए। इसके उपरांत सूखी, अवांछित, घनी शाखाओं को एवं लगभग 15-20 प्रतिशत कल्लों को भी प्रतिवर्ष निकालते रहना चाहिए। प्ररोहों की कटार्इ-छँटार्इ के बाद कापर आक्सीक्लोराइड ;3 ग्रामलीटर पानी का छिड़काव करना चाहिए।
पोषण प्रबंèान : 100 ग्राम नाइट्रोजन, 50 ग्राम फास्फोरस एवं 100 ग्राम पोटाश प्रति पौèाा प्रतिवर्ष डालना चाहिए। यह मात्रा 10 वर्ष के बाद 1 किग्रा निशिचत कर देते हैं। इसके अतिरिक्त सड़ी हुर्इ गोबर की खाद शुरू के 10 वषो± तक 40-50 किग्रा एवं 10 वर्ष के बाद 70-80 किग्रा प्रति वृक्ष जुलार्इ में डालना चाहिए। यूरिया के आèाी मात्रा एवं फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा जुलार्इ में तथा यूरिया की शेष आèाी मात्रा अक्टूबर में डालना चाहिए।
पौèा रक्षा : बरसात में प्राय: पत्ती खाने वाले घुन का प्रकोप बढ़ जाता है जो नर्इ-नर्इ पत्तियों को खा जाता है। इसके नियंत्रण हेतु कार्बेरिल कीटनाशक 0.2 प्रतिशत यानि 2 ग्राम कीटनाशक प्रति लीटर पानी के साथ मिलाकर 15 दिन के अंतराल पर दो छिड़काव करने से कीट को नियंत्रित किया जा सकता है।
इसी प्रकार कोर्इ अन्य कीट या व्याèाि का प्रकोप हो तो उसका प्रभावी नियंत्रण करना चाहिए।
उपज : इस प्रकार देखा गया है कि सामान्य बागवानी की अपेक्षा सघन बागवानी से 5-6 गुणा अèािक उपज प्राप्त की जा सकती है।
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