आँवला की सघन बागवानी
औषèाीय गुणों एवं प्रचुर मात्रा में पोषक तत्व विधमान होने के कारण आँवला एक महत्वपूर्ण फल है। प्रत्येक 100 ग्राम गूदे में 550 से 750 मिग्रा विटामिन सी पाया जाता है। आँवला के ताजे एवं सूखे दोनों प्रकार के फलों का प्रयोग आयुर्वेदिक दवाइयों में किया जाता है। आँवले के फल से मुरब्बा, च्यवनप्राश, त्रिफला चूर्ण एवं तेल बनाने हेतु किया जाता है। ताजे फलों की चटनी, अचार, रस इत्यादि बनाने हेतु भी प्रयोग करते हैं। इसमें पाया जाने वाला विटामिन 'सी हमारी त्वचा, नेत्रज्योति, केश, फेफड़ा और कानित के लिए बहुत उपयोगी होता है। यह शरीर को युवा और शकितशाली बनाये रखने में मदद करता है। यह भूख बढ़ानेवाला, रक्तशोèा स्मरण शकित, पौरूषबल बढ़ानेवाला होता है।
भूमि की तैयारी एवं रेखांकन : भूमि की तैयारी परम्परागत बागवानी के अनुसार ही किया जाता है। परम्परागत बागवानी में पौèाों की दूरी 10 × 10 मीटर होता है, जबकि सघन बागवानी में इसे 5 × 5 मी पर लगाया जा सकता है। सघन बागवानी के अनुसार खेत का रेखांकन करके ढ़वा बना लिया जाता है। इन गडढों में सड़ी गोबर की खाद 40 किग्रा, अंडी की खल्ली 1 किग्रा मिटटी में मिलाकर गडढा को भर देना चाहिए। फिर आँवला के पौèो को अगस्त-सितम्बर में लगाते समय 10-15 मिली क्लोरोपायरीफास
प्रति गडढे मिलाकर पौèाों की रोपार्इ की जानी चाहिए।
सिंचार्इ : पौèा लगाने के बाद तुरंत सिंचार्इ करना चाहिए। उसके बाद आवश्यकतानुसार 7-15 दिनों के अन्तर पर सिंचार्इ करते रहना चाहिए।
कटार्इ-छँटार्इ : पहले वर्ष पौèाों को बढ़ने देना चाहिए एवं 0.75 से लेकर 1.0 मीटर तक की उचार्इ पर कटार्इ की जानी चाहिए ताकि कटार्इ बिन्दु के निचले भाग से नये प्ररोह का सृजन हो सके। शुरू में अèािक कोणवाली 2 से 4 टहनियों की आमने-सामने की दिशाओं में बढ़ने को प्रोत्साहित किया जाता है। अवांछनीय टहनियों को मार्च-अप्रैल में निकाल दिया जाता है। बाद में 4-6 टहनियों को चारों दिशाओं में विकसित होने दिया जाता है।
पोषण प्रबंèान : आँवले के प्रत्येक पौèा को 10 किग्रा गोबर की खाद, 100 ग्राम नाइट्रोजन, 50 ग्राम फास्फोरस तथा 75 ग्राम पोटाश डालना चाहिए। फास्फोरस तथा 75 ग्राम पोटाश डालना चाहिए। अगले वर्ष यह मात्रा दुगुनी करनी चाहिए। इसी तरह प्रत्येक साल इसकी मात्रा आयु के साथ-साथ बढ़ती जाती है। 10 वर्ष में खाद की मात्रा 10 गुनी हो जाती है। दस वर्ष के पश्चात प्रतिवर्ष उतनी ही खाद की मात्रा डालनी चाहिए जितना कि 10वें वर्ष में दी गयी। गोबर की खाद और फास्फोरस की पूरी मात्रा तथा नाइट्रोजन और पोटाश की आèाी मात्रा जून जूलार्इ में तथा नाइट्रोजन की आèाी एवं पोटाश की आèाी मात्रा नवम्बर-दिसम्बर में डालना चाहिए। आंवले में अच्छे फलन हेतु फल आने से पहले प्रति पेड़ 3-4 किलो ग्राम सुपर फास्फेट डालने से फल लगने में वृद्धि होती है।
अफलन की समस्या : आँवला में अफलन की समस्या बनी रहती है। इसके निराकरण के लिए शुरू से èयान देने की जरूरत है। पौèा प्रवर्èान के समय अच्छी फलत पौèाों से ही शांकुर शाखा लेना चाहिए। इसमें स्वयं बंèयता होने के कारण काफी संख्या में फूल आने के बावजूद फल नहीं लग पाते हैं। इसके लिए बागवान को अपने बगीचे में दो-तीन किस्मों का पेड़ अवश्य लगाना चाहिए।
पौèा रक्षा :
छाल खाने वाले कीट : इसका प्रकोप तने एवं शाखा में होता है। रोकथाम के लिये मिटटी के तेल, पेट्रोल या सल्फास की गोलियों को छेदों में डालकर चिकनी मिटटी से बन्द कर देना चाहिए।
रस्ट : यह कवक जनित रोग है। इसमें पत्तियों पर गोल या अंडाकार लाल èाब्बे बन जाते हैं। रोकथाम के लिये 0.2 प्रतिशत डाइथेम एब-45 के घोल का 15 दिन के अन्तर पर अगस्त से सितम्बर तक दो छिड़काव करना चाहिए।
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