अमरूद की सघन बागवानी
अन्य फल वृक्षों की तरह अमरूद में भी सघन बागवानी की अच्छी संभावनाएँ हैं यह एक लोकप्रिय फल है। उत्पादन की दृषिट से देश में उगाए जाने वाले फलों में अमरूद का चौथा स्थान है। इसके उत्पादन में कम लागत लगती है, लेकिन पैदावर काफी अच्छी होती है। इसका उपयोग ताजा खाने के अतिरिक्त इससे जैम, जेली, नेक्टर, चीज और टाफी इत्यादि बनाया जाता है। अमरूद पोषक तत्वों का एक बहुत अच्छा और सस्ता स्रोत है। पौषिटकता की दृषिट से यह सेब से भी अèािक पौषिटक है।
भूमि की तैयारी एवं रेखांकन : भूमि की तैयारी परम्परागत तकनीक के जैसा ही करते हैं, सिर्फ रेखांकन में पौèाों-से-पौèाों एवं कतार-से-कतार की दूरी को कम किया जाता है। अमरूद के पेड़ों को 2 × 2 मीटर की दूरी पर लगाया जा सकता है।
पौèा रोपण : पूर्णरूपेण तैयार गडढों में पौèाों को मानसून शुरू होने के बाद लगा दिया जाता है।
सिंचार्इ : नये पौèाों को सप्ताह में कम-से-कम एक बार सिंचार्इ अवश्य करनी चाहिए।
कटार्इ-छँटार्इ : अमरूद के पेड़ को एक विशेष आकार एवं मजबूती देने के लिए कटार्इ-छँटार्इ की जाती है। अमरूद के पेड़ में मुख्य तने पर भूमि तल से लगभग 60-70 सेमी तक कोर्इ शाखा नहीं रहना चाहिए इसके बाद मुख्य तना के उपरी भाग को काट दिया जाता है। इस उँचार्इ के बाद 20-25 सेमी के अंदर 3-4 शाखाएँ चुन ली जाती है। इन शाखाओं को बढ़ने के लिए छोड़ दिया जाता है एवं अन्य शाखाओं को काट दिया जाता है। इन शाखाओं को 4-5 महीने तक बढ़ने दिया जाता है। जब तक कि ये 40-50 सेमी का न हो जाय। अब इन प्ररोहों को इनकी लम्बार्इ के 50 प्रतिशत तक काटा जाता है जिससे कि कटे हिस्से के ठीक नीचे से कल्लों का सृजन हो सके। नव सृजित कल्लों को 40-50 सेमी लम्बार्इ तक बढ़ने देने के ;4-5 माह बाद पुन: उनकी कटार्इ-छँटार्इ की जाती है। कटार्इ-छँटार्इ का कार्य पौèा रोपण के दूसरे वर्ष के दौरान भी जारी रखा जाता है। दो वषो± के बाद, कैनापी की परिèाि के भीतर वाली छोटी शाखाएँ सघन तथा सशक्त ढाँचे का निर्माण करती है। सही तरीके से कटार्इ-छँटार्इ द्वारा तैयार किये गये पौèो का व्यास दो मीटर तथा उँचार्इ 2.5 मीटर तक सीमित रखने हेतु प्रत्येक वर्ष जनवरी-फरवरी तथा मर्इ-जून में कल्लों की कटार्इ की जाती है।
पोषण प्रबंèान : अच्छी पैदावार और स्वादिष्ट फलों के लिए पौèाों को नियमित खाद और उर्वरक देना आवश्यक है। खाद और उर्वरक की उचित मात्रा देने का समय और सही तरीके से उसको दिया जाना अत्यन्त आवश्यक है। अमरूद में पहला एवं दूसरा साल गोबर की खाद 10-15 किग्रा, नाइट्रोजन 60 ग्राम, फास्फोरस 30 ग्राम एवं पोटाश 30 ग्राम दिया जाना चाहिए। नाइट्रोजन की आèाी मात्रा अक्टूबर और आèाी मात्रा जून में दी जाती है। फास्फोरस और पोटाशèाारी उर्वरकों को अक्टूबर में दिया जाना चाहिए। गोबर की खाद की पूरी मात्रा जून में दी जाती है। इन उर्वरकों को तने से थोड़ी दूर छोड़कर अच्छी तरह मिटटी में मिला देना चाहिए। इसके बाद सिंचार्इ करना जरूरी है।
पौèा रक्षा :
फलमक्खी : बरसात में फल के अन्दर पिल्लू हो जाते हैं जो फलमक्खी के होते हैं। इसकी रोकथाम के लिए रोगर दवा का 0. 05 प्रतिशत घोल का छिड़काव 10 दिनों के अन्तर पर जब फल पेड़ में लग जाय, 3-4 बार करें। इसी तरह अन्य कीड़े एवं बीमारियों का उपचार समय-समय पर करते रहना चाहिए।
उपज : परम्परागत बागवानी की तुलना में सघन बागवानी से 5-6 गुणा अèािक उपज प्राप्त किया जा सकता है।
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