अनानास की सघन बागवानी
अनानास संसार के महत्वपूर्ण फलों में है और इसकी खेती मुख्य फसल या अन्र्तर्पसल के रूप में की जा सकती है। इसकी खेती उष्णकटिबन्èाीय एवं नम उष्णकटिबन्èाीय क्षेत्रों में की जा सकती है। बिहार में इसकी खेती पूर्णिया एवं सहरसा जिले में सफलतापूर्वक की जाती है। इस फल में सभी प्रकार के लवण तथा विटामिन ए, बी एवं सी पाये जाते हैं। इसका उपयोग ताजा फलों को खाने में डिब्बाबंद, सिरप, पेस्ट्री फैक्ट्री में, रस, जैम, स्क्वैश, नेक्टर इत्यादि बनाने में किया जाता है।
भूमि की तैयारी एवं रेखांकन : भूमि की तैयारी परम्परागत बागवानी के जैसा ही करना चाहिए। रेखांकन का कार्य सघन बागवानी के अनुसार करनी चाहिए। परम्परागत बागवानी में 10,000 से 15,000 पौèाा प्रति हेक्टेयर ही लगाये जाते हैं जबकि दूसरे देशों में प्रति हेक्टेयर पौèाों की संख्या 40,000 से 71,758 तक है।
पौèाों की दूरी उसके सघनता के आèाार पर
पौèाों की सघनता दूरी प्रति हेक्टेयर दूरी ;सेमी.
पौèाा-से-पौèाा कतार-से-कतार बेड-से-बेड़
43,500 30 60 90
43,300 25 60 90
63,700 22.5 60 75
63,700 22.5 45 90अनानास के सघन बागवानी के मुख्य फायदे निम्नलिखित हैं।
- उपज में वृद्धि होती है।
- खरपतवार कम निकलते हैं।
- पौèाा सघन रहने के कारण फलों को èाूप से क्षति नहीं होता है।
- अèािक संख्या में पौèा प्राप्त होता है।
- पौèाा सघन रहने से तेज हवा का प्रभाव कम पड़ता है, जिससे कि पौèो कम गिरते हैं।
- मिटटी में पानी का वाष्पीकरण कम होता है।
रोपने का समय : अगस्त से सितम्बर
सिंचार्इ : अनानास के पौèाों को नमी की काफी आवश्यकता होती है इसलिए जाड़े में 10 दिनों पर एवं गर्मी में सप्ताह में एक बार सिंचार्इ अवश्य करनी चाहिए।
खाद एवं उर्वरक : 200 किवंटल कम्पोस्ट प्रति हेक्टेयर की दर से डालना चाहिए। इसके अतिरिक्त 680 किग्रा अमोनियम सल्पफेट, 340 किग्रा फास्फोरस तथा 680 किग्रा पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से साल में दो बार डालना चाहिए। पहली बार मानसून के आने पर तथा दूसरी बार बरसात के खत्म होने पर सितम्बर-अक्टूबर में डालना चाहिए।
पौèा रक्षा : अनानास बहुत ही सख्त पौèाा है, जिस पर कीड़े एवं बीमारियों का कम प्रकोप होता है। इसमें मुख्यत: मिली बग और जड़सड़न रोग होने की संभावना रहती है। इसके रोकथाम के लिए उचित कीटनाशक का व्यवहार करना चाहिए एवं जड़ सड़न से बचने के लिए रोपने के पूर्व पुत्तलों की जड़ों की पास पीली पत्तियों को हटा देना चाहिए तथा पोटाशियम परमैगनेट के 5 प्रतिशत या एगेलौल के घोल में छोटे सिरे को डुबोकर 4-5 दिनों तक उन्हें èाूप में सुखाना चाहिए।
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