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अण्डी की खेती तराई क्षेत्र के पीलीभीत, खीरी, सीतापुर, बहराईच, श्रावस्ती, संतकबीर नगर, गोण्डा, गोरखपुर, जनपदों व बुन्देलखण्ड क्षेत्र तथा कानपुर, इलाहाबाद एवं आगरा जनपदों में शुद्घ तथा मिश्रित रूप में की जाती है। इसकी खेती मक्का और ज्वार के साथ तथा खेत की मेडो पर की जाती है। इसका तेल दवाओं तथा कल पुर्जो में प्रयोग होता है और विदेशी मुद्रा अर्जित करने का अच्द्दा साधन है।
उन्नतिशील प्रजातियॉ प्रजाति बोने का उपयुक्त समय अवधि (दिनो में) उपज (कु./हे.) उपयुक्त क्षेंत्र टा-३ सितम्बर में बोने पर १८० ११-१४ तराई क्षेत्र तराई-४ सितम्बर में बोने पर १८० ११-१४ तराई क्षेत्र कालपी-६ जुलाई में बोने पर सितम्बर में बोने पर २४० १८० १२-१४ बुन्देलखण्ड हेतु तदैव जी.सी.एच. ४ (हाईब्रिड) १५ जुलाई से १५ अगस्त १३०-१४० ३५-४० मैदानी क्षेत्र जलोढ़ तथा तराई क्षेत्र के लिए टा-३ एवं तराई-४ प्रजाति उपयुक्त है, जो जुलाई में बोकर २४०-२४५ दिनों में एवं सितम्बर में बोने पर १८० दिन में पक कर तैयार हो जाती है। टा-३ का तना हरा अधिक शाखा युक्त तथा फल चटकने वाले होते है। इन प्रजातियों की औसत उपज क्षमता ११ से १४ कुन्तल प्रति हेक्टेयर है। बुन्देलखण्ड क्षेत्र के लिए कालपी ६ उपयुक्त है, जो जुलाई में बोर २४० दिन में एवं सितम्बर में बोकर १८० दिन में पक कर तैयार होती है। इसका तना लाल, कम शाखायुक्त और फल चटकने वाले होते है। और इसकी औसत उपज १२ से १४ कु. प्रति हे. है।
उन्नतिशील प्रजातियॉ
प्रजाति
बोने का उपयुक्त समय
अवधि (दिनो में)
उपज (कु./हे.)
उपयुक्त क्षेंत्र
टा-३
सितम्बर में बोने पर
१८०
११-१४
तराई क्षेत्र
तराई-४
कालपी-६
जुलाई में बोने पर
२४०
१२-१४
बुन्देलखण्ड हेतु तदैव
जी.सी.एच. ४ (हाईब्रिड)
१५ जुलाई से १५ अगस्त
१३०-१४०
३५-४०
मैदानी क्षेत्र
जलोढ़ तथा तराई क्षेत्र के लिए टा-३ एवं तराई-४ प्रजाति उपयुक्त है, जो जुलाई में बोकर २४०-२४५ दिनों में एवं सितम्बर में बोने पर १८० दिन में पक कर तैयार हो जाती है। टा-३ का तना हरा अधिक शाखा युक्त तथा फल चटकने वाले होते है। इन प्रजातियों की औसत उपज क्षमता ११ से १४ कुन्तल प्रति हेक्टेयर है। बुन्देलखण्ड क्षेत्र के लिए कालपी ६ उपयुक्त है, जो जुलाई में बोर २४० दिन में एवं सितम्बर में बोकर १८० दिन में पक कर तैयार होती है। इसका तना लाल, कम शाखायुक्त और फल चटकने वाले होते है। और इसकी औसत उपज १२ से १४ कु. प्रति हे. है।
बीज दर: प्रति हेक्टर १५ कि०ग्रा० बीज का प्रयोग करना चाहिये। बुवाई का समय व विधि : वर्षा होने पर बुवाई करें बोने का उचित समय १५ जुलाई से १५ अगस्त अन्त तक एवं सितम्बर माह है। अण्डी की बुवाई हल के पीद्दे कतारों में ९० से.मी. की दूरी पर करें। पौधे से पौध की दूरी ६० से.मी. रखें।
बीज दर: प्रति हेक्टर १५ कि०ग्रा० बीज का प्रयोग करना चाहिये।
बुवाई का समय व विधि : वर्षा होने पर बुवाई करें बोने का उचित समय १५ जुलाई से १५ अगस्त अन्त तक एवं सितम्बर माह है। अण्डी की बुवाई हल के पीद्दे कतारों में ९० से.मी. की दूरी पर करें। पौधे से पौध की दूरी ६० से.मी. रखें।
संतुलित उर्वरकों का प्रयोग : नत्रजन ५० किग्रा. एंव फास्फोरस २५ कि.ग्रा. प्रति हे. की दर से प्रयोग करे। राकड़ तथा मूड भूमि में १५ किग्रा. प्रति हे. पोटाश भी डाले। फास्फोरस तथा पोटाश की कुल मात्रा एंव नत्रजन की आधी मात्रा की बुवाई के समय बेसल ड्रेसिंग करें तथा नत्रजन की शेष मात्रा की खड़ी फसल में निराई गुडाई के समय टाप-ड्रेसिग करे।
सिंचाई : जहाँ पर सिंचाई की सुविधा उपलब्ध है वहा आवश्यकतानुसार सिचाई की जा सकती है।
निकाई-गुडाई: बुवाई के तीन सप्ताह बाद पहली निकाई गुडाई करके पौधों की आपस की दूरी ठीक कर लें।
अण्डी की बीजांकुर रोग पहचान: इस रोग में पत्तियों पर गोलाकार हल्के रंग के धब्बे बनते है। जो क्रमशः बढ़कर बडे हो जाते है। और पत्तियां सूख जाती है। पानी के खराब निकास वाले क्षेत्रों में छोटे पौधों पर बीमारी लगती है। पत्तियों का धब्बेदार रोग पहचान: इस रोग में पत्तियों पर छोटे-छोटे काले या कत्थाई रंग के धब्बे बनते है। तथा धब्बे के किनारे पीले रंग के होते है। उपचार: इस रोग की रोकथाम हेतु २ कि.ग्रा. जिंक मैगनीज कार्बामेट अथवा जीरम ८० प्रतिशत घुलनशील चूर्ण के २ कि.ग्रा. अथवा जीरम २७ प्रतिशत के ३.०० लीटर का द्दिडकाव प्रति हे० करना चाहिये।
अण्डी की बीजांकुर रोग
पहचान: इस रोग में पत्तियों पर गोलाकार हल्के रंग के धब्बे बनते है। जो क्रमशः बढ़कर बडे हो जाते है। और पत्तियां सूख जाती है। पानी के खराब निकास वाले क्षेत्रों में छोटे पौधों पर बीमारी लगती है।
पत्तियों का धब्बेदार रोग
पहचान: इस रोग में पत्तियों पर छोटे-छोटे काले या कत्थाई रंग के धब्बे बनते है। तथा धब्बे के किनारे पीले रंग के होते है।
उपचार: इस रोग की रोकथाम हेतु २ कि.ग्रा. जिंक मैगनीज कार्बामेट अथवा जीरम ८० प्रतिशत घुलनशील चूर्ण के २ कि.ग्रा. अथवा जीरम २७ प्रतिशत के ३.०० लीटर का द्दिडकाव प्रति हे० करना चाहिये।
केस्टर सेमीलूपर पहचान: इस कीट की सूडियां सलेटी काले रंग की होती है जो पत्ती खाकर नुकसान पहुचती है। इसकी रोकथाम हेतु निम्न मे से किसी एक कीटनाशी का बुरकाव या छिडकाव प्रति हेक्टेयर की दर से करना चाहिये। उपचार क्यूनालफास १.५ लीटर या मिथाइल पैराथियान २ प्रतिशत २५ किग्रा. या इन्डोसल्फान ३५ ई.सी. १.२५ लीटर या डी.डी.वी.पी. ७६ प्रतिशत ५०० मि.लीटर।
केस्टर सेमीलूपर
पहचान: इस कीट की सूडियां सलेटी काले रंग की होती है जो पत्ती खाकर नुकसान पहुचती है। इसकी रोकथाम हेतु निम्न मे से किसी एक कीटनाशी का बुरकाव या छिडकाव प्रति हेक्टेयर की दर से करना चाहिये।
उपचार
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Hemant Sharma
A User from Hanumangarh, Rajasthan,India
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