:
फसल सुरक्षा
प्रमुख रोग:
१. चूर्णिल आसिता रोग
२. मृदु रोमिल आसिता
३. मूल विगलन
४. तना विगलन
५. उकठा रोग
अपनायी जाने वाली प्रमुख क्रियायें:
१. समय पर रोग प्रतिरोधी/रोग सहिष्णु प्रजातियों के प्रमाणित बीज की बुवाई करें जैसे चूर्णिल असिता रोग की प्रतिरोधी प्रजाति रचना, पन्त मटर-मालवीय मटर आदि बुवाई हेतु प्रयोग करना चाहिए जिससे रोग की उग्रता में कमी आती है
२. बीज को ट्राइकोडरमा पाउडर की ४-५ ग्राम मात्रा+कार्बोक्सिन कि एक ग्राम मात्रा प्रति किग्रा बीज कि दर से उपचारित करके बुवाई करें| जिससे बीज जनित रोगों तथा मृदा जनित रोगों से प्रारम्भिक अवस्था में फसल को बचाया जा सकता है |
३. मृदु रोमिल असिता एवं चुर्णित आसिता जैसे रोगों से बचाव के लिए फसल के लिये नियमित निगरानी रखनी चाहिए तथा रोग कि शुरुआती अवस्था दिखाई देते ही उचित कवकनाशी का प्रयोग करना चाहिए| चूर्णिल आसिता के प्रबंधन हेतु गंधक चूर्ण कि २.५ मात्रा/लीटर पानी की दर से तथा मृदुरोमिल आसित से बचाव के लिए मैन्कोंजेब की २.५ ग्राम मात्रा/लीटर पानी की दर से फसल पर २-३ छिड़काव १० दिन के अन्तराल पर आवयकतानुसार करें|
४. भूमि जनित रोग जैसे मूल विगलन तना विगलन तथा उकठा से बचाव के लिए बुवाई से पूर्व ट्राइकोडरमा पाउडर की ५ किग्रा. मात्रा २.५ कुं. गोबर की खाद या वर्मीकम्पोस्ट को मिलाकर भूमि को उपचारित करने से विभिन्न रोगों का समुचित प्रबन्धन किया जा सकता है |
५. पोटाश एवं फास्फोरस युक्त उर्वरकों को संतुलित मात्रा में प्रयोग करना चाहिए जिससे रोग की उग्रता में कमी आती है एवं पौधों में रोग प्रतिरोधक क्षमता का भी विकास होता है|
मटर के प्रमुख रोग:
बुकनी रोग की पहचान:
पत्तियाँ, फलियाँ तथा तने पर सफेद चूर्ण सा फैलता है और बाद में पत्तियाँ आदि ब्राउन या काली होकर मरने लगती है
उपचार:
१. अवरोधी किस्मों का प्रयोग किया जाये |
२. इसकी रोकथाम के लिए घुलनशील गंधक या डाइनोकेप ४८ ई. सी. ६०० मी.ली. या कार्बेन्डाजिम ५०० मी.ली. दावा का ६००-८०० लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से दो बार छिड़काव करना चाहिए |
उकठा रोग की पहचान:
इस रोग की प्रारम्भिक अवस्था में पौधों की पत्तियाँ नीचे से ऊपर की ओर पीली पड़ने लगती हैं और पौधा सूख जाता है |
उपचार:
जिस खेत में एक खेत में एक बार मटर इस वीमारी का प्रकोप हुआ हो उनमें ३-४ वर्षों तक यह फसल नही बोनी चाहिए | बीज को २.५ ग्राम कार्बेन्डाजिम अथवा बैनोमिल प्रति किग्रा बीज में मिलाकर उपचारित करके बोयें |
सफेद विगलन रोग की पहचान:
इस रोग से पौधे के सभी वायवीय भाग रोग से ग्रसित हो जाते है | पौधे के ग्रसित भागो पर सफेद रंग की फफूंदी उग जाती है और बाद में ग्रसित भगो के ऊपर तथा अन्दर काले रंग के गोल दाने स्क्लेरोशिया बन जाते हैं |
उपचार:
इस रोग की रोकथाम के लिए निम्न उपाय अपनाने चाहिए:
१. फसल की बुवाई नवम्बर के प्रथम सप्ताह के पहले नही करनी चाहिए |
२. जिस खेत में इस रोग का प्रकोप पिछले सालों में अधिक देखने को मिला हो इसमे कम से कम ५ वर्षों तक मटर तथा अन्य दलहनी फसले न बोई जायें |
३. जनवरी के प्रथम सप्ताह से जब वीमारी के लक्षण फसल में दिखाई पड़ें तब कार्बेन्डाजिम ०.०५ प्रतिशत या घुलनशील गंधक ०.३ प्रतिशत दवा का १५ दिन के अन्तराल में छिड़काव करें |
झुलसा (अल्टरनेरिया ब्लाइट) रोग की पहचान:
सभी वायवीय भाग पर इसका प्रकोप होता है | सर्वप्रथम नीचे की पत्तियों पर किनारे से भूरे रंग के धब्बे बनते है |
उपचार:
इस रोग की रोकथाम के लिए २.५ ग्राम थीरम नामक दवा से प्रति किग्रा. बीजोपचार करना चाहिए और बाद में फसल पर मेन्कोजेब का ०.२ प्रतिशत घोल बनाकर छिड़काव करें |
बीज विगलन रोग की पहचान:
इस रोग में बीज अंकुरण से पहले या अंकुरण के समय सड़ना प्रारम्भ हो जाते है | जिससे खेत में बीजो का अंकुरण भली प्रकार न होने के कारण पौधों की संख्या काफी कम हो जाती है |
उपचार:
इस रोग की रोकथाम हेतु बीज बोने से पूर्व थीरम २.५ ग्राम अथवा कैप्टन २.० ग्राम या बेनलेट तथा थीरम का २.५० ग्राम या बेनलेट तथा कैप्टान का २.५० ग्राम प्रति किग्रा. बीज की दर से बीजोपचार करना लाभदायक रहता हैं |