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जेट्रोफा को रतन ज्योति भी कहते है जो कि यूफोरबीएसी कुल का पौधा है। यह पौधा मुख्य रूप से राजस्थान , गुजरात आदि प्रान्तो मे पाया जाता है व भारतवर्ष के सभी मैदानी क्षेत्रो में ऊचाई वाले स्थानों में सफलता से उगाया जाता है। इसका रोपड़ खेत की परिसीमाओं पर बाढ़ (हेज) के रूप में किया जाता है तथा इसे सजावटी पौधो के रूप में भी उगाया जाता है। इन पौधों में सुखा व विपरीत मौसम सहन करने की छमता होती। इस पौधे की बढवार बहुत तेजी से होती है। इसकी कई अन्य प्रजातियॉ प्राकृतिक दशा में पायी जाती है। लेकिन जेट्रोफा ही तेल उत्पादन के लिए उपयुक्त पाया गया है। यह तेल उत्पादन करने वाला पौधा है जो लगभग ३-४ मीटर ऊँचा होता है। इस इस पौधे को कोई जानवर नहीं खाता है व देखने में सजावटी पौधा लगता है। यह पौधा कैंसर प्रतिरोधी दवाइयों के निर्माण के काम में भी आता है। इसका तेल त्वचीय रोग (खाज खुजली दाद) गठिया लकवां आदि रोगो में व ईधन (बायो डीजल) के रूप में प्रयोग किया जाता है। इस पौधें से प्राकृतिक रंग भी प्राप्त होता है जिसे कपडे के रंगने में भी प्रयोग किया जाता है। इसकी पत्तियॉ व शाखाओं आदि भूमि में मिलकर उसकी उर्वरा शक्ति को बढाती है। इसके पौधे को कोई जानवर नहीं खाता है व इसमें सूखा सहने की क्षमता होती है। इस के बीज में तेल लगभग ३२ से ४० प्रतिशत तक होता है। इसकों उगाने के लिए निम्न बिन्दुओं पर ध्यान देना आवश्यक है।
शुष्क व अर्द्घ शुष्क जलवायु इसके लिए उपयुक्त पाई गयी है।
जेट्रोफा की खेती प्रायः सभी प्रकार की भूमि में की जा सकती है। लेकिन सामान्यतया इसकी खेती कम उपजाऊ, परती भूमि, रेतीली, पथरीली, बलुई व कम गहरे वाली भूमि पर भी की जा सकती है। जहाँ जल भराव न होता हो
अन्तः फसले: जेट्रोफा की दो पंक्तियों के बीच में दलहनी फसलें जैसे - मूंगफली, मूंग, उर्द, मटर एवं कैच करेला, कलिहारी, अश्वगंध, अदरक, हल्दी आदि की खेती की जा सकती है क्योकि एक वर्ष तक दो पंक्तियो के बीच के खाली स्थान में अन्त फसले सरलतापूर्वक उगाई जा सकती है जिससे किसान को अतिरिक्त लाभ मिल सकता है।
इसके लिए खेत की ३-४ जुताई वर्षा प्रारम्भ होने के बाद जुलाई के माह में की जाती है तथा भूमि को पाटे की सहायता से समतल कर दिया जाता है। पौधों के रोपण हेतु सम्पूर्ण खेत मे २x२ मी० की दूरी पर गड्डे बनाये जाते है, जिनका आकार ४५x४५x४५ सेमी होता है। व प्रत्येक गड्डे में एक टोकरी कम्पोस्ट की खाद व २०० ग्राम नीम की खली का पाउडर मिलाकर कर भर देना चाहिये।
नर्सरी की तैयारी व पौधों का रोपण का समय व विधि: जेट्रोफा का रोपण बीज, कटिंग व पौध से किया जाता है। नर्सरी में बीजों की बुवाई फरवरी-मार्च व मई-जून के महीनों मे की जाती है। जब पौधों ४५ - ६० सेमी. ऊँचा हो जाए तो उसे जुलाई माह में खेत में बने गड्ढों में रोपाई कर देना चाहिये। पौधें से पौध व पंक्ति से पंक्ति की दूरी २ मी. रखते है। इस प्रकार एक हेक्टर प्रक्षेत्र के लिए २ - ४ किग्रा. बीज की आवश्यकता पड़ती है।
पौधों की रोपाई के समय प्रत्येक गड्ढे में लगभग ११२ ग्रा. यूरिया+१२० किग्रा. सुपर फास्फेट १५ ग्रा. म्यूरेट आफ पोटास को गड्डे में मिला देना चाहिये।
चूंकि यह फसल वर्षा आधारित है किन्तु वर्षा न होने पर वर्ष भर ४ - ५ सिंचाईयाँ १५-२० दिनों के अन्तराल पर करते रहना चाहिये। फूल व फल आने की स्थिति में पानी देना आवश्यक होता है।
खरपतवार नियंत्रण करने के लिए प्रारंभिक काल में निकाई गुडाई की आवश्यकता पडती है तथा १ वर्ष बाद पौधो की अधिक बढवार हो जाने के पश्चात इसकी कम आवश्यकता पडती है।
पौधों की दो वर्ष आयु होने के उपरान्त फूल व फल गुच्छे में आना प्रारम्भ होता है, कटिंग द्वारा लगाये। गयें पौधों में उसी वर्ष फल आ जाता है। पके हुए फल का रंग काला होता है, जो दिसम्बर व जनवरी माह में पक जाती है। प्रत्येक फल से २ - ३ बीज प्राप्त होता है। बीजों की तुडाई श्रमिकों के द्वारा की जाती है जो कि गुच्छे में होता है। उनके गुच्छे के धूप में सुखा कर डंडे की सहायता से फलों से बीज को आसानी से अलग कर लिया जाता है। बीजों को छाये में सुखाकर टाट के बोरो में भरकर स्टोर करना चाहियें। मार्च के महीने में पौधे को २-३ फुट की ऊचाई से काट देना चाहियें तकि अगले वर्ष पौधों से अच्द्दी फसल मिल सके। एक बार रोपित पौधें से लगभग ३०-४० वर्षो तक फसल मिलती रहती है।
जेट्रोफा से दूसरे वर्ष लगभग ४ - ६ कु. तीसरे वर्ष ५ - १० कुन्टल चौथे वर्ष १० - १५ बीज प्रति हेक्टर प्राप्त होता है। जिसका बाजार में मूल्य रू० ८००-१००० प्रति कुन्टल होता है। जिससे शुद्घ लाभ रू० ५,००० प्रथम वर्ष (कटिंग द्वारा रोपित पौधा) २०,००० (द्वितीय वर्ष) रू० ४०,००० (तृतीय वर्ष) ६०,००० (चौथे वर्ष) रू० १,००,००० व (पॉचवे वर्ष) प्राप्त होता है।
तेल का उपयोग:
Maize can be grown throughout the year at altitude ranging from sea level to about 300 m. Maize grows best in areas with rainfall of 600-900 mm. It requires fertile, well-drained soil with a pH ranging from 5.5-8.0, but pH 6.0-7.0 is optimum. Season As a rainfed crop, maize is grown in June-July or August-September. The irrigated crop is raised in January-February.
Maize can be grown throughout the year at altitude ranging from sea level to about 300 m. Maize grows best in areas with rainfall of 600-900 mm. It requires fertile, well-drained soil with a pH ranging from 5.5-8.0, but pH 6.0-7.0 is optimum.
Season
As a rainfed crop, maize is grown in June-July or August-September. The irrigated crop is raised in January-February.
Hybrids: Ganga Hybrid-1, Ganga Hybrid-101, Deccan hybrid, Renjit, Hi-Starch.Composite varieties: Kissan Composite, Amber, Vijay, Vikram, Sona, Jawahar.
Preparation of land and sowingPlough the land three times and prepare ridges and furrows.
Seed rate: 20 kg/ha Sowing: Dibble one seed per hole at a spacing of 60 cm x 23 cm for the rainy season crop. For irrigated crop, beds are prepared. Here, seeds are sown in lines and earthed up later in to small ridges to form furrows when the crop reaches knee height.
Seed rate: 20 kg/ha
Sowing: Dibble one seed per hole at a spacing of 60 cm x 23 cm for the rainy season crop. For irrigated crop, beds are prepared. Here, seeds are sown in lines and earthed up later in to small ridges to form furrows when the crop reaches knee height.
Apply FYM/ compost at the rate of 25 t/ha at the time of preparation of land. The recommended fertilizer dose is 135 kg N, 65 kg P2O52O/ha. Apply full dose of P2O5 and K2O and 1/3 dose of N as basal. Apply 1/3 N 30-40 days and the rest 60-70 days after sowing. and 15 kg K
IrrigationIrrigate the crop on the day of sowing and on third day. Subsequent irrigations may be given at 10-15 days intervals.
AftercultivationHand hoeing and weeding on the 21st and 45th day after sowing.
Plant protectionNeed based application of carbaryl is recommended for control of pests
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Hemant Sharma
A User from Hanumangarh, Rajasthan,India
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