बुवाई का समय
देर से पकने वाली प्रजातियॉ जो लगभग २७० दिन में तैयार है की बुवाई जुलाई माह में करनी चाहिये। शीघ्र पकने वाली प्रजातियों को सिंचित क्षेत्रों में जून के मध्य तक बो देना चाहियें। जिससे यह फसल नवम्बर के अन्त तक पक कर तैयार हो जाये और दिसम्बर के प्रथम पखवारे में गेहूँ की बुवाई सम्भव हो सके। अधिक उपज लेने के लिए टा-२१ प्रजाति को अप्रैल प्रथम पखवारे में (प्रदेश के मैदानी क्षेत्रों में तराई को छोड़कर) ग्रीष्म कालीन मूंग के साथ सह फसल के रूप में बोने के लिए जायद में बल दिया जा चुका है। इसके दो लाभ है।
- फसल नवम्बर के मध्य तक तैयार हो जाती है। एवं गेहूँ की बुवाई में देर नही होती है।
- इसकी उपज जून में (खरीफ) बोई गई फसल से अधिक होती है।
- मेड़ों पर बोने से अच्छी उपज मिलती है।
बीज का उपचार
सर्वप्रथम एक किग्रा बीज को २ ग्राम थीरम तथा एक ग्राम कार्बेन्डाजिम से उपचारित करें। बोने से पहले हर बीज को अरहर के विशिष्ट राइजोबियम कल्चर से उपचारित करें। एक पैकेट १० किग्रा. बीज के ऊपर छिडक कर हल्के से मिलाये जिससे बीज के ऊपर एक हल्की पर्त बन जायें। इस बीज की बुवाई तुरन्त करे। तेज धूप से कल्चर के जीवाणु के मरने की आशंका रहती है। ऐसे खेतों में जहॉ अरहर पहली बार काफी समय बाद बोई जा रही हो। कल्चर का प्रयोग अवश्य करे।
बीज की मात्रा तथा बुवाई विधि
बुवाई हल के पीद्दे कूंडो में करनी चाहिये। प्रजाति तथा मौसम के अनुसार बीज की मात्रा तथा बुवाई की दूरी निम्न प्रकार रखनी चाहियें। बुवाई के २०-२५ दिन बाद पौधे की दूरी सघन पौधे का निकालकर निश्चित कर देनी चाहियें।
बुवाई का समय
प्रजाति
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बुवाई का समय
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बीज की दर कि.ग्रा./हे.
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बुवाई की दूरी पंक्ति से पंक्ति (से.मी.)
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पौधे से पौधे (से.मी.)
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टा-२१ (शुद्घ फसल हेतु)
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जून का प्रथम पखवारा
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१२-१५
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६०
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२०
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टा-२१ (मिश्रित फसल हेंतु)
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अप्रैल का प्रथम पखवारा
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१२-१५
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७५
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२०
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यू.पी.ए.एस.-१२० (शुद्घ फसल हेतु)
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मध्य जून
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१५
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४५-६०
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२०
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आई.सी.पी.एल-१५१
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मध्य जून
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२०-२५
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४५
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२०
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नरेन्द्र-१
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जुलाई प्रथम सप्ताह
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१५-२०
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६०
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२०
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अमर
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जुलाई प्रथम सप्ताह
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१५-२०
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६०
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२०
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बहार
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जुलाई प्रथम सप्ताह
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१५-२०
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६०
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२०
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आजाद
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जुलाई प्रथम सप्ताह
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१५
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९०
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३०
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मालवीय, विकास, नरेन्द्र अरहर-२, पूसा बहार-९
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जुलाई प्रथम सप्ताह
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१५
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९०
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३०
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पूर्वी उत्तर प्रदेश में बाढ या लगातार वर्षा के कारण बुवाई में विलम्ब होने की दशा में सितम्बर के प्रथम पखवारे में बहार की शुद्घ फसल के रूप में बुवाई की जा सकती है। परन्तु कतार से कतार की दूरी ३० से.मी. एवं बीज की मात्रा २०-२५ किग्रा/हे. की दर से प्रयोग करना चाहिये।