जीवाणु झुलसा:
पहचान:
इसमें पत्तियों नोक अथवा किनारे से एकदम सूखने लगती है। सूखे हुए किनारे अनियमित एवं टेढे मेढे होते है।
उपचार:
१. बोने से पूर्व बीजोपचार उपयुक्त विधि से करे।
२. रोग के लक्षण दिखाई देते ही यथा सम्भव खेत का पानी निकालकर १५ ग्राम स्ट्राप्टोसाइक्लीन व कॉपर आक्सीक्लोराइड के ५०० ग्राम अथवा १.०० किग्रा. ट्राइकोडार्म विरिडा सम्भव खेत में पानी निकालकर १५ ग्राम स्ट्रेप्टोसाइक्लीन के आवश्यक पानी में घोलकर प्रति हे. २ से ३ छिड़काव करें।
३. रोग लक्षण दिखाई देने पर नत्रजन की टापड्रेसिंग आदि बाकी है तो उसे रोक देना चाहियें।
झोंका रोग:
पहचान:
पत्तियों पर आँख के आकृति के धब्बे बनते है। जो बीज में राख के रंग तथा किनारों पर गहरे कत्थाई रंग के होते है। इनके अतिरिक्त बालियॉ डठलों पुष्पशाखाओं एवं गांठो पर काले भूरे धब्बे बनते है।
उपचार:
१. बोने से पूर्व बीजो २.३ ग्राम थीरम या १.२ ग्राम कार्बेन्डाजिम प्रति किलोग्राम की दर से उपचारित करे।
२. खड़ी फसल पर निम्न मे से किसी एक रसायन का द्दिडकाव करना चाहियें।
३. कार्बेडाजिम १ किग्रा. प्रति हे. की दर से २-३ छिड़काव १०-१२ दिन के अंतराल पर करें।
खैर रोग:
पहचान:
यह रोग जस्ते की कमी के कारण होता है। इसमें पत्तियॉ पीली पड़ जाती है। जिस पर बाद में कत्थई रंग के धब्बे पड़ जाते है।
उपचार:
फसल पर ५ किग्रा. जिंक सल्फेट को २० किग्रा. यूरिया अथवा २.५ किग्रा. बुझे चूने के ८०० लीटर पानी के साथ मिलाकर प्रति हे. छिड़काव करना चाहिये।
मिथ्या कण्डुआ रोग:
बाली निकलते समय कार्बेन्डाजिम ०.१ प्रतिशतघोल ७ दिन के अन्तराल पर दो बार छिड़क दिया जाता है। कर मिथ्या कंडुआ तथा बंट और कुरखुलेरिया जैसे रोगजनक से पैदा होने वाली बीमारियों के प्रकोप को कम किया जा सकता है।
फुदके:
यदि तनों के फुदको की औसत संख्या प्रति पौध ८-१० या इससे अधिक हो तथी कीटनाशी का प्रयोग कीजिए। यदि फसल कल्ला निकलने की अवस्था मे हो तो ३ प्रतिशत दानेदार कार्बोयूरान २०-२५ किलोग्राम प्रति हे.या कारटाप ४ जी. १८.५ किग्रा. की दर से प्रयोग कीजिए। यदि बालियॉ निकल आई हो और हापरबर्न होता हुआ दिखाई दे तो बी.पी.एम.सी. और डी.टी.वी.पी. (एक मिली+एक मिली.) अथवा इथोफेनप्राक्स २० ई.सी. के एक मिली. को एक ली. पानी के हिसाब से घोल तेयार करके घोल आवश्यक मात्रा का प्रयोग करे। घोल की मात्रा खेत के आकार और मशीन पर निर्भर करता है। दवा को हापरर्वन की जगह पर पहले बाहर की ओर से छिड़काव करे। फिर अंदर बढिये। इसके बाद किसी भी कीटनाशी धूल का प्रयोग किया जा सकता है। प्रभावी कीट नियंत्रण के लिए छिड़काव या बुरकाव पौधो के तनों की ओर करना चाहिये।