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बरसात में निचले जलभराव के क्षेत्र सामान्य एवं रबी फसलों के लिए अनुपयुक्त रहते है। ऐसे क्षेत्र लगभग ३००० हेक्टेयर पूर्वी उत्तर प्रदेश के बलिया देवरिया गोरखपुर बस्ती सिद्घार्थनगर मिर्जापुर वाराणसी एवं गाजीपुर जनपदो में आज भी उपलब्ध है पर इस बड़े भूभाग की समुचित शस्य प्रबन्धन प्रभावी उपजाऊ प्रजातियों एवं कृषकों को लाभकारी प्रोत्साहन के अभाव में उत्पादकता अत्यन्त कम है। जबकि बोरो प्रजातियों में प्रचुरता रोग कीट एवं मौसमी खरपतवार की न्यून सम्भावनाओं के कारण सामान्य धान की तुलना में लगभग ३०-५० प्रतिशत तक अधिक उपज बोरो धान की खेती से प्राप्त किया जा सकता है। जो कि एक अतिरिक्त उत्पादन के रूप में प्रदेश एवं किसानों के लिए एक वरदान सिद्घ हो सकता है। इस तरह निष्प्रयोज्य भूमि उपयोग से कुल फसल आच्द्दादन क्षेत्र में वृद्घि एवं कृषको के बेकार समय का सदुप्रयोग होने से उत्पादकता एवं आय में बढ़ोत्तरी की जा रही है। परीक्षणों में अन्य प्रदेशों द्वारा प्रतिपादित प्रजातियों जैसे- प्रभात सरोज गौतम आदि उत्पादन की दृष्टि से उत्तम पायी गयी है।
बरसात मे अधिक जल भराव से आच्द्दादित क्षेत्रफल जिसका जल वर्षा ऋतु समाप्त होने के साथ साथ घट कर अधिकतम ३० सेमी० रह जाता है। उपयोगी होता है। कहीं - कहीं जहां बड़ी नहरों के किनारे वाली भूमि जो सदैव जल रिसाव (सीपेज) के कारण जलाच्द्दादित रहती है। बोरों धान की खेती के लिए उपयोगी होती है।
बोरो धान की संस्तुत अधिक उपजाऊ प्रजातियां क्र०सं. प्रजाति का नाम अवधि दिनो में उपज क्षमता कुन्तल/हे. १ नरेन्द्र-९७ १४५ ३५-४५ २ बरानीदीप १४० ३०-४० ३ रिद्दारिया १६० ३५-४५ ४ धन लक्ष्मी १७० ४५-५५ ५ प्रभात १६० ५०-६० ६ सरोज १७० ५५-६५ ७ गौतम १७५ ६०-७०
बोरो धान की संस्तुत अधिक उपजाऊ प्रजातियां
क्र०सं.
प्रजाति का नाम
अवधि दिनो में
उपज क्षमता कुन्तल/हे.
१
नरेन्द्र-९७
१४५
३५-४५
२
बरानीदीप
१४०
३०-४०
३
रिद्दारिया
१६०
४
धन लक्ष्मी
१७०
४५-५५
५
प्रभात
५०-६०
६
सरोज
५५-६५
७
गौतम
१७५
६०-७०
बीज दर ४०-४५ किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की दर से पौध डालना चाहिये। पौध डालने का समय मध्य अक्टूबर से मध्य नवम्बर का समय उपयुक्त होता है। रोपाई का समय एक माह से अधिक दो माह से कम समय की पौधरोपाई करने से अच्द्दी उपज प्राप्त होती है। डेपोग विधि से पौधतैयार करना इस विधि से पौधकहीं भी द्दत या बड़ी आकार की लोहे या लकड़ी के बने पनारे (ट्रे) पर तैयार की जा सकती है। अंकुरित बीज की एक इन्च मोटी सतह चयनित आधार पर फैला देते है। इस सतह को हल्के हाथों से कुद्द दिनों तक थपथपा देते है। तथा इसमें पानी द्दिड़क कर नमी बनाये रखते है। इस विधि से पौधउगाने में ठंडक से हानि की सम्भावना कम होती है। रोपाई हेतु खेत की तैयारी जिस खेत में रोपाई करना है गर्मी के मौसम में कम से कम दो जुताई तथा मजबूत मेड़ बनाना अति आवश्यक है। १० टन गोबर की सड़ी खाद प्रति हेक्टेयर बरसात आरम्भ होने से पूर्व खेत मे बिखेर कर जुताई एवं पाटा लगा देते है। रोपाई अनुकूल तापक्रम (१३-१४ से० औसत तापक्रम) पर १५ जनवरी से १५ फरवरी के बीच ६० ेस ७० दिन के २-३ पौध (१८-२० सेमी० लम्बे प्रति पूजा की रोपाई इस ढ़ंग से करना चाहियें कि प्रति वर्ग मीटर ४०-५० पूजा अवश्य आयें।
बीज दर
४०-४५ किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की दर से पौध डालना चाहिये।
पौध डालने का समय
मध्य अक्टूबर से मध्य नवम्बर का समय उपयुक्त होता है।
रोपाई का समय
एक माह से अधिक दो माह से कम समय की पौधरोपाई करने से अच्द्दी उपज प्राप्त होती है।
डेपोग विधि से पौधतैयार करना
इस विधि से पौधकहीं भी द्दत या बड़ी आकार की लोहे या लकड़ी के बने पनारे (ट्रे) पर तैयार की जा सकती है। अंकुरित बीज की एक इन्च मोटी सतह चयनित आधार पर फैला देते है। इस सतह को हल्के हाथों से कुद्द दिनों तक थपथपा देते है। तथा इसमें पानी द्दिड़क कर नमी बनाये रखते है। इस विधि से पौधउगाने में ठंडक से हानि की सम्भावना कम होती है।
रोपाई हेतु खेत की तैयारी
जिस खेत में रोपाई करना है गर्मी के मौसम में कम से कम दो जुताई तथा मजबूत मेड़ बनाना अति आवश्यक है। १० टन गोबर की सड़ी खाद प्रति हेक्टेयर बरसात आरम्भ होने से पूर्व खेत मे बिखेर कर जुताई एवं पाटा लगा देते है।
रोपाई
अनुकूल तापक्रम (१३-१४ से० औसत तापक्रम) पर १५ जनवरी से १५ फरवरी के बीच ६० ेस ७० दिन के २-३ पौध (१८-२० सेमी० लम्बे प्रति पूजा की रोपाई इस ढ़ंग से करना चाहियें कि प्रति वर्ग मीटर ४०-५० पूजा अवश्य आयें।
पौध प्रबन्ध पौध डालने के लिए सिंचाई सुविधा से युक्त भारी मृदा होनी चाहियें। पौधवाले खेत में १ - १.५ किग्रा. प्रति वर्ग मी. दर से गोबर या कम्पोस्ट की सड़ी हुई खाद डालने के साथ साथ प्रति १/१० हे. मे २५ किग्रा. यूरिया २५ कि.ग्रा. सिंगल सुपर फास्फेट , २० किग्रा. म्यूरेट ऑफ पोटाश एवं २ किग्रा. जिंक सल्फेट डालना आवश्यक हैं खाद एवं उर्वरक डालकर खेत मे जुताई/पाटा करके अच्द्दी तरह मिला देते है। नर्सरी डालने से पहले बोविस्टीन 2 ग्राम प्रति किग्रा. बीज की दर से बीज शोधन करना श्रेयस्कर होता है। इसके बाद बीज को रातभर के लिए पानी में डुबा देते है। प्रातः पानी से बाहर निकाल कर द्दाया में जूट के बोरो पर फैलाने के बाद पुनः जूट के भीगे बोरो से ढ़क देते है। दो दिन बाद यह बीज अंकुरित होकर पौधडालने लायक हो जाता है। खेत मे पानी भरकर अच्द्दी जुताई एवं पाटा लगाकर द्दोड़ देते है। सायकांल अंकुरित बीजों को समान रूप से खेत में ८० - १०० ग्राम बीज प्रति वर्ग मीटर की दर से द्दिड़क देते है। पौध के लिए द्दायादार खेत भी उपयोगी होता है। आवश्यकतानुसार खेत की सिंचाई मीटर की दर से द्दिड़क देते है। पौध के लिए द्दायादार खेत भी उपयोगी होता है। आवश्यकतानुसार खेती की सिचाई करते रहते है। आरम्भ में चिड़िया से बचाव करना आवश्यक होता है। उर्वरक आवश्यकता एवं प्रयोग १०० किग्रा. नत्रजन (२५० कि.ग्रा. यूरिया) ४० कि.ग्रा. फास्फोरस (२५० कि.ग्रा. सिंगलज सुपर फास्फेट) एवं २० कि.ग्रा. पोटाश (८० कि.ग्रा. म्यूरेट ऑफ पोटाश) प्रति हेक्टेयर की दर से पलेवा की जुताई के समय आधा नत्रजन तथा फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा का प्रयोग करना चाहिये। शेष नत्रजन की आधी मात्रा रोपाई के ३० दिन बाद तथा आधी बाली निकलते समय उपर द्दिड़काव द्वारा प्रयोग करना चाहियें।
पौध प्रबन्ध
पौध डालने के लिए सिंचाई सुविधा से युक्त भारी मृदा होनी चाहियें। पौधवाले खेत में १ - १.५ किग्रा. प्रति वर्ग मी. दर से गोबर या कम्पोस्ट की सड़ी हुई खाद डालने के साथ साथ प्रति १/१० हे. मे २५ किग्रा. यूरिया २५ कि.ग्रा. सिंगल सुपर फास्फेट , २० किग्रा. म्यूरेट ऑफ पोटाश एवं २ किग्रा. जिंक सल्फेट डालना आवश्यक हैं खाद एवं उर्वरक डालकर खेत मे जुताई/पाटा करके अच्द्दी तरह मिला देते है। नर्सरी डालने से पहले बोविस्टीन 2 ग्राम प्रति किग्रा. बीज की दर से बीज शोधन करना श्रेयस्कर होता है। इसके बाद बीज को रातभर के लिए पानी में डुबा देते है। प्रातः पानी से बाहर निकाल कर द्दाया में जूट के बोरो पर फैलाने के बाद पुनः जूट के भीगे बोरो से ढ़क देते है। दो दिन बाद यह बीज अंकुरित होकर पौधडालने लायक हो जाता है। खेत मे पानी भरकर अच्द्दी जुताई एवं पाटा लगाकर द्दोड़ देते है। सायकांल अंकुरित बीजों को समान रूप से खेत में ८० - १०० ग्राम बीज प्रति वर्ग मीटर की दर से द्दिड़क देते है। पौध के लिए द्दायादार खेत भी उपयोगी होता है। आवश्यकतानुसार खेत की सिंचाई मीटर की दर से द्दिड़क देते है। पौध के लिए द्दायादार खेत भी उपयोगी होता है। आवश्यकतानुसार खेती की सिचाई करते रहते है। आरम्भ में चिड़िया से बचाव करना आवश्यक होता है।
उर्वरक आवश्यकता एवं प्रयोग
१०० किग्रा. नत्रजन (२५० कि.ग्रा. यूरिया) ४० कि.ग्रा. फास्फोरस (२५० कि.ग्रा. सिंगलज सुपर फास्फेट) एवं २० कि.ग्रा. पोटाश (८० कि.ग्रा. म्यूरेट ऑफ पोटाश) प्रति हेक्टेयर की दर से पलेवा की जुताई के समय आधा नत्रजन तथा फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा का प्रयोग करना चाहिये। शेष नत्रजन की आधी मात्रा रोपाई के ३० दिन बाद तथा आधी बाली निकलते समय उपर द्दिड़काव द्वारा प्रयोग करना चाहियें।
सिंचाई आवश्यकतानुसार सिंचाई करते हैं खेत में पानी की प्रचुर उपलब्धता से खरपतवार नियन्त्रण में आसानी होती है। बोरोधान में रोपाई ब्यांत, बाली निकालते समय तथा दाना भरते समय खेत में कम से कम ६ सेमी० पानी भरा होना चाहिये। कटाई से १५ दिन पहले सिंचाई की कोई आवश्यकता नही रह जाती है।
सिंचाई
आवश्यकतानुसार सिंचाई करते हैं खेत में पानी की प्रचुर उपलब्धता से खरपतवार नियन्त्रण में आसानी होती है। बोरोधान में रोपाई ब्यांत, बाली निकालते समय तथा दाना भरते समय खेत में कम से कम ६ सेमी० पानी भरा होना चाहिये। कटाई से १५ दिन पहले सिंचाई की कोई आवश्यकता नही रह जाती है।
सामान्यतया बोरोधान में खरपतवार कीड़े एवं रोगो की समस्या सामान्य धान की तुलना में कम होती है। लेकिन अच्द्दी उपज के लिए निम्न फसल सुरक्षा उपाय अपनाना चाहियें। खरपतवार प्रबन्धन १.५ कि.ग्रा. ब्यूटाक्लोर प्रति हेक्टेयर की दर से रोपाई की दो-तीन दिन बाद खरपतवार अंकुरण से पहले प्रयोग करना चाहियें। रोपाई के ३० एवं ५० दिन बाद खरपतवार की निकाई कर देना चाहियें। २.४-डी ०.५ कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर की दर से खरपतवार उगने के बाद करना चाहियें।
सामान्यतया बोरोधान में खरपतवार कीड़े एवं रोगो की समस्या सामान्य धान
की तुलना में कम होती है। लेकिन अच्द्दी उपज के लिए निम्न फसल सुरक्षा उपाय अपनाना चाहियें।
खरपतवार प्रबन्धन
बोरोधान के प्रमुख का उपचार निम्न प्रकरी करना चाहियें। १. भूरा धब्बा बीज उपचार पौधडालने से पूर्व ३ ग्राम थीरम प्रति किग्रा. बीज की दर से करना चाहिये। खड़ी फसल में जीरम के ८० प्रतिशत चूर्ण का २ कि.ग्रा. या ई.सी. ३ लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिये। २. झोंकारोग १.५ ग्राम थीरम या १.५ ग्राम कार्बन्डाजिम प्रति किग्रा. बीज की दर से बीजोउपचार करना चाहियें। खड़ी फसल में जीरम २ किग्रा. अथवा एडीपिफलापफास ०.१ प्रतिशत के घोल का २-३ प्रयोग १०-१२ के दिन के अन्तराल पर करना चाहिये। ३. शीथ झुलसा खड़ी फसल में १.५ किग्रा. थायोफेनेटमेथाइल अथवा १ कि.ग्रा. कार्बन्डाजिम ८०० लीटर पानी मे घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से १० दिन के अन्तराल पर आवश्यकतानुसार द्दिड़काव करना चाहियें।
बोरोधान के प्रमुख का उपचार निम्न प्रकरी करना चाहियें।
१. भूरा धब्बा बीज उपचार पौधडालने से पूर्व ३ ग्राम थीरम प्रति किग्रा. बीज की दर से करना चाहिये। खड़ी फसल में जीरम के ८० प्रतिशत चूर्ण का २ कि.ग्रा. या ई.सी. ३ लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिये।
२. झोंकारोग १.५ ग्राम थीरम या १.५ ग्राम कार्बन्डाजिम प्रति किग्रा. बीज की दर से बीजोउपचार करना चाहियें। खड़ी फसल में जीरम २ किग्रा. अथवा एडीपिफलापफास ०.१ प्रतिशत के घोल का २-३ प्रयोग १०-१२ के दिन के अन्तराल पर करना चाहिये।
३. शीथ झुलसा खड़ी फसल में १.५ किग्रा. थायोफेनेटमेथाइल अथवा १ कि.ग्रा. कार्बन्डाजिम ८०० लीटर पानी मे घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से १० दिन के अन्तराल पर आवश्यकतानुसार द्दिड़काव करना चाहियें।
बोरोधान को क्षति पहुचाने वाले प्रमुख कीटों की रोकथाम निम्नानुसार करना चाहियें। १. भूरा फुदका: कल्ले निकलते समय प्रति पौधा ८-१० फुदको की संख्या दिखाई देने पर ३ प्रतिशत दानेदार कार्बोयूरान २०-२५ कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना चहियें। यदि बालिया निकल आयी हों। तो इथेपफेनप्राक्स २० ई.सी. १ मिली. प्रति लीटर पानी के हिसाब से घोल तैयार करके आवश्यकतानुसार द्दिड़काव करना चाहिये। २. तना द्देदक : कल्लें निकलते की अवस्था में ५ प्रतिशत प्रकोप होने पर ३ प्रतिशत यूराडान २०-२५ कि.्रग्रा. चूर्ण प्रति हेक्टेयर की दर से बुंरकाव करे। ३. गंधी कीट : प्रकोप होने पर ५ प्रतिशत मैलाथियान चूर्ण २०-२५ कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर की दर से प्रातः अथवा सायंकाल बुरकाव करें।
बोरोधान को क्षति पहुचाने वाले प्रमुख कीटों की रोकथाम निम्नानुसार करना चाहियें।
१. भूरा फुदका: कल्ले निकलते समय प्रति पौधा ८-१० फुदको की संख्या दिखाई देने पर ३ प्रतिशत दानेदार कार्बोयूरान २०-२५ कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना चहियें। यदि बालिया निकल आयी हों। तो इथेपफेनप्राक्स २० ई.सी. १ मिली. प्रति लीटर पानी के हिसाब से घोल तैयार करके आवश्यकतानुसार द्दिड़काव करना चाहिये।
२. तना द्देदक : कल्लें निकलते की अवस्था में ५ प्रतिशत प्रकोप होने पर ३ प्रतिशत यूराडान २०-२५ कि.्रग्रा. चूर्ण प्रति हेक्टेयर की दर से बुंरकाव करे।
३. गंधी कीट : प्रकोप होने पर ५ प्रतिशत मैलाथियान चूर्ण २०-२५ कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर की दर से प्रातः अथवा सायंकाल बुरकाव करें।
कटाई एवं मड़ाई बाली के निचले दाले कड़े हो जाने पर सिंचाई बन्द करके सभी दानों के कड़े हो जाने पर (फूलने से ३०-३५ दिन बाद) कटाई करना चाहिये। कटाई के एक दिन बाद दानों की सफाई करके द्दाया में १३-१४ प्रतिशत नमी तक सुखा देना चाहिये। भण्डारण किसी भी धातविक अथवा अधातविक पात्र में भण्डारण किया जा सकता है। जिसमें पारगम्यता सुगम न हो भण्डारण पूर्व मैलाथियान ५० ई.सी. से इसे संक्रमणहीन करके लकड़ी के पटरे पर बोरो अथवा धातविक पात्र दीवाल से ३० सेमी. दूरी बनाकर रखते है। और भण्डारण बन्द कर देते है।
कटाई एवं मड़ाई
बाली के निचले दाले कड़े हो जाने पर सिंचाई बन्द करके सभी दानों के कड़े हो जाने पर (फूलने से ३०-३५ दिन बाद) कटाई करना चाहिये। कटाई के एक दिन बाद दानों की सफाई करके द्दाया में १३-१४ प्रतिशत नमी तक सुखा देना चाहिये।
भण्डारण
किसी भी धातविक अथवा अधातविक पात्र में भण्डारण किया जा सकता है। जिसमें पारगम्यता सुगम न हो भण्डारण पूर्व मैलाथियान ५० ई.सी. से इसे संक्रमणहीन करके लकड़ी के पटरे पर बोरो अथवा धातविक पात्र दीवाल से ३० सेमी. दूरी बनाकर रखते है। और भण्डारण बन्द कर देते है।
पौधको ठंडक से बचाने के उपाय १ पौधकी सिंचाई समुचित रूप से करतें रहना चाहिये। २ लकड़ी/पुआल/गोबर की राख का द्दिड़काव सप्ताह में दो बार करते रहना चाहिये। ३ प्रातः पत्तियों पर एकत्र ओस को गिरा देना चाहियें।
पौधको ठंडक से बचाने के उपाय
१ पौधकी सिंचाई समुचित रूप से करतें रहना चाहिये।
२ लकड़ी/पुआल/गोबर की राख का द्दिड़काव सप्ताह में दो बार करते रहना चाहिये।
३ प्रातः पत्तियों पर एकत्र ओस को गिरा देना चाहियें।
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Hemant Sharma
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