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चने के प्रमुख कीट:
कटुआ कीट:
यह लगभग २.५ सेमी. लम्बा तथा ०.७ सेमी.चौड़ा मटमैले भूरे रंग का पतंगा होता है | इसके अगले पंख पिछले पंखों से रंग में काले गाढे होते है जिनके लम्बाई में काले रंग के धब्बे होते है तथा किनारों पर आड़ी दिशा में हल्के काले रंग के लहरदार पट्टी पायी जाती है | इस कीट के हरे एवं भूरे रंग की सुड़ियाँ रात में निकलकर नये पौधों को जमीं की सतह या पुराने पौधों की शाखाओं को काटकर जमीन पर गिरा देती हैं |
फली बेधक कीट :
प्रौढ़ पतंगा पीले बादामी रंग का होता है | अगली जोड़ी पंख पीले भरे रंग के होते है और पंख के मध्य में एक काला निशान होता है | पछले पंख कुछ चौड़े मटमैले सफ़ेद से हल्के रंग के होते है तथा इनके किनारे पर काले रंग की पट्टी होती है | सुड़ियाँ हरे अथवा भूरे हरे रंग की होती हैं | तथा इनके किनारे पर काले रंग की पट्टी होती है नवजात सुड़ियाँ प्रारम्भ में कोमल पत्तियों को खुरचकर खाती है बाद में ये पत्तियों कलिकाओं तथा फलियों पर आक्रमण करती है | सुड़ियाँ फलियों में छेद बनाकर सिर को अन्दर घुसकर दानो को खाती रहती है एक सूंडी अपने जीवनकाल में ३० से ४० फलियों को परभावित कर देती हैं |
कूबड़ कीड़ा :
इसकी सुड़ियाँ हरे रंग की होती है जो अर्धलूप बनाकर चलती है मादा पतंगा काले भूरे रंग का लगभग १७ मिमी. लम्बा होता है | नर पतंगा आकार में इससे कुछ छोटा तथा गहरे रंग का होता है इसका पूरा पंख मुलायम रोयों से ढंका होता है | कीट की सुड़ियाँ पत्तियों, कोमल टहनियों, कलियों, फलों एवं फलियों को खाकर नुकसान पहुचाती हैं |
आर्थिक क्षति स्तर:
क्रम. संख्या |
कीट का नाम |
फसल अवस्था |
आर्थिक क्षति स्तर |
१. |
कटुआ कीट |
वानस्पतिक अवस्था |
एक सूँडी प्रति वर्ग मीटर |
२. |
सेमीलूपर
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फूल एवं फलियाँ बनते |
२ सूंडी प्रति दस पौधे पर |
३. |
चने का फली बेधक |
फूल एवं फलियों बनते समय |
२-३ अण्डे प्रति पौधा या २-३ छोटी सुड़ियों प्रति १० पौधा या ४-५ पतंगे प्रति पतंगे प्रतिगंधपास लगातार २-३ दिन पर आने के ७-१० दिन बाद
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एकीकृत प्रबन्ध:
- समय से बुवाई करनी चाहिए |
- छिटफुट बुवाई नही करनी चाहिए |
- थोड़ी थोड़ी दूर पर सूखी घास के छोटे-छोटे ढेर को रखकर कटुआ कीट की छिपी हुई सुड़ियों को प्रात: खोजकर मार देना चाहिए |
- चने के साथ अलसी, सरसों, गेहूँ या धनियाँ की सहफसली खेती करने से फली बेधक कीट से होने वाली हानि कम हो जाती है |
- खेत के चारो ओर एवं लाइनों के मध्य अफ्रीकन जाइन्ट गेंदे के ट्रैप क्राप केरूप में प्रयोग करना चाहिए |
- प्रति हेक्टेयर की दर से ५०-६०वर्ड पर्चर लगाना चाहिए |
- फूल एवं फलियाँ बनते समय सप्ताह के अन्तराल पर निरिक्षण अवश्य करना चाहिए | फली बेधक के लिए ५ गंधपास प्रति हेक्टेयर की दर से ५० मीटर की दुरी पर लगाकर भी निरिक्षण किया जा सकता है |
निरिक्षण उपरोक्त किसी भी कीट के आर्थिक क्षति स्तर पर पहुचने पर :
१. २५० से ३०० सूंडी समतुल्य एच.एन.पी.वी. (चने के फल बेधक न्यूक्लियर पाली हेडोसिस वाइरस)२५० से ३०० लीटर पानी में घोलकर सायंकाल सप्ताह के अन्तराल पर दो तीन छिडकाव करना चाहिए | एच.एन. पी.वी. के घोल में ०.५ प्रतिशत गुड तथा ०.१ प्रतिशत टिनोपाल भी मिला देना चाहिए या |
२. निम्नलिखित कीट नाशियों में से किसी एक को यंके सामने लिखित मात्रा को प्रति हेक्टेयर की दर से बुरकाव अथवा ७००-८०० लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें |
बेसिलस थुरेन्जेसिस वेराइटी कुरस्टकी की १ किग्रा या
इन्डोसल्फान ३५ इ.सी. का १.५ से २.० लीटर या
क्यूनालफास २५ ई. सी. का १.५ से २.० लीटर या
मैलाथियान ५० ई.सी. २.० लीटर या
साइपरमेथ्रिन ७५० मिली. या
फेनवेलरेट १ लीटर या फेनवेलरेट ०.४ प्रतिशत धुल २५ किग्रा. या
फेन्थोएट २ प्रतिशत धूल २५ किग्रा.
निरिक्षण करते रहे आवश्यकता पड़ने पर दूसरा छिड़काव/बुरकाव करें एक ही कीट नाशी का दो बार प्रयोग न करें |