Varieties
:
अ लसी की उन्नतशील प्रजातियों का विवरण
प्रजाति
विमोचन वर्ष
पकने की अवधी (दिनों में)
उपज (कु./हे.)
तेल की प्रतिशत
विशेष
सिंचित
असिंचित
क. बीज बहुद्देशीय
गरिमा
१९९५
१२०-१३०
१८-२०
-
४२-४३
गेरुई/ रतुआ अवरोधी तथा उकठा सहनशील मैदानी क्षेत्रों हेतु |
श्वेता
१९९५
१३०-१३५
१५-१८
१०-१५
४३-४४
तदैव
शुभ्रा
१९९५
१३०-१३५
२०-२२
१०-१२
४५
समस्त उ. प्र. हेतु गेरुई/रतुआ/उकठा व कलिका मक्खी अवरोधी |
लक्ष्मी २७
१९९७
११५-१२०
१५-१८
१०-१५
४५
बुन्देलखण्ड हेतु संस्तुत गेरुई/ रतुआ अवरोधी |
पदमिनी
१९९७
१२०-१२५
१५-१८
१२-१५
४५
बुन्देलखण्ड हेतु संस्तुत फफूँदी चूर्ण रोग अवरोधी |
शेखर
२००१
१३५-१४०
२०-२५
१४-१६
४३
मैदानी क्षेत्रों हेतु उपयुक्त |
शारदा
२००६
१००
८.०
-
४५
सफेद बुकनी अवरोधी |
मदू आजाद-१
२००८
१२२-१२५
१६.३
-
४५
झुलसा अवरोधी |
ख. द्विउदेशीय
गौरव
१९८७
१३५-१५०
१८-२०
रेशा १२-१४
४३
मैदानी क्षेत्रों के लिए उपयुक्त |
शिखा
१९९७
१३५-१५०
२०-२२
रेशा १३-१५
४१
तदैव
रश्मि
१९९९
१३५-१४०
२०-२४
रेशा १४-१५
४१-४८
तदैव
पार्वती
२००१
१४०-१४५
२०-२२
रेशा १३-१४
४१-४२
बुन्देलखण्ड हेतु संस्तुत उकठा /गेरुई /रतुआ व फफूँदी चूर्ण रोग अवरोधी
Field preparation
:
इसकी खेती मटियार एवं चिकनी दोमट भूमियों में सफलता पूर्वक की जाती है| खरीफ की फसले कटने के बाद एक जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करनी चाहिए तत्पश्चात कल्टीवेटर अथवा देशी हल से दो जुताई करके खेत अच्छी तरह से समतल कर लेना चाहिए |
Seed & Sowing
:
बीज दर: बहुउद्देशीय प्रजातियों के लिए ३० किग्रा./हे. तथा द्विउद्देशीय प्रजातियों के लिए ५० किग्रा./ हे. |बुवाई की दूरी: बहुउद्देशीय प्रजातियों के लिए २५ सेमी. कूंड से कूंड तथा द्विउद्देशीय प्रजातियों के लिए २० सेमी . कूंड से कूंड |बुवाई का समय एवं बिधि : अलसी बोने का उचित समय सम्पूर्ण अक्टूबर माह है| इसका बीज २५-३० किग्रा ./हे. की दर से बोया जाता है | इसकी बुवाई हल के पीछे कूंडों में २५ से. मी. की दूरी पर करें |
Nutrient management
:
असिंचित क्षेत्रों के लिए अच्छी उपज प्राप्ति हेतु नत्रजन ५० कि.ग्रा. एवं ४० कि.ग्रा. पोटाश कि दर से तथा सिंचित क्षेत्रों में १०० किग्रा. नत्रजन ६० किग्रा. फास्फोरस एवं ४० किग्रा. पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें| असिंचित दशा में नत्रजन, फास्फोरस एवं पोटाश की सम्पूर्ण मात्रा व फास्फोरस की पूरी मात्रा बुवाई के समय चोगें द्वारा २-३ सेमी. नीचे प्रयोग करें सिंचित दशा में नत्रजन की शेष आधी मात्रा टाप ड्रेसिंग के रूप में प्रथम सिंचाई के बाद प्रयोग करें| फास्फोरस के लिए सुपर फास्फेट का प्रयोग अधिक लाभप्रद है |
Water management
:
यह फसल प्राय: असिंचित रूप में बोई जाती है, परन्तु जहाँ सिंचाई का साधन उपलब्ध है वहाँ दो सिंचाई पहली फुल आने पर तथा दूसरी दाना बनते समय करने से उपज में बढ़ोत्तरी होती है |
Disease management
:
(१) अल्टरनेरिया झुलसा: इस रोग का प्रकोप पौधों के सभी भागों पर होता है| सर्वप्रथम पत्तियों के उपरी सतह पर गहरे कत्थई रंग के गोल धब्बे के रूप में लक्षण दिखाई देता है जो छल्लेदार होता है | यह रोग ऊपर की ओर बढ़ कर तने शाखाओं पुष्पक्रमों एवं फलियों को प्रभावित करता है| रोग की उग्र अवस्था में फलियाँ कलि पद जाती है और हल्का सा झटका लगने से टूटकर गिर जाती हैं|रोकथाम: १. बीज को २.५ ग्राम थीरम में प्रति किग्रा. बीज की दर से शोधित करके बोयें |
२. बुवाई नवम्बर के प्रथम सप्ताह में करें |
३. गरिमा, श्वेता, शुभ्रा, शिखा, शेखर तथा पदमिनी प्रजातियों को बोयें |४. खड़ी फसल में मैकोजेब २.५ किग्रा./ हे. की दर से ४०-५० दिन पर छिड़काव करें दूसरा और तीसरा छिड़काव १५ दिनों के अन्तराल पर करें |
(२) रतुआ या गेरुई रोग:
इस रोग में पत्तियों पुष्प शाखाओं तथा तने पर रतुआ की नारंगी रंग के फफोले दिखाई देते हैं | इस रोग की रोकथाम के लिए मैंकोजेब २.५ किग्रा. अथवा घुलनशील गंधक ३ किग्रा. प्रति हेक्टेयर की दर से छिडकाव करें (३) उकठा रोग : रोग ग्रसित पौधों की पत्तियां नीचे से ऊपर की ओर पीली पड़ने लगती है तथा बाद में पूरा पौधा सूख जाता है | इस रोग के बचाव के लिए दीर्घ अवधी का फसल चक्र अपनाएं |(४) बुकनी: इस रोग में पत्तियों पर सफेद चूर्ण सा फैल जाता है और बाद में पत्तियां सूख जाती हैं इसकी रोकथाम के लिए घुलनशील गंधक ३ किग्रा./हे. की दर से छिड़काव करें |
Insect pest management
:
गालमिज: नवजात मैगट सफेद पारदर्शी एवं पीले धब्बे युक्त होते है जो पूर्ण विकसित होने पर गहरे नारंगी हो जाते है | प्रौढ़ कीट गहरे नारंगी रंग की छोटी मक्खी होती है | इसकी छोटी गिडारें फसल की खिलती कलियों के अन्दर के पुंकेसर को खाकर नुकसान पहुचती है जिससे फलियों में दाने नहीं बनते हैं |आर्थिक क्षति स्तर:
क्र. सं.
कीट का नाम
फसल की अवस्था
आर्थिक क्षति स्तर
१.
गालमिज
कलियाँ बनते समय
५ प्रतिशत प्रकोपित कलियाँ
एकीकृत प्रबंध:
गर्मी की गहरी जुताई से गालमिज की सुंडिया मर जाती है |
गालमिज से अवरोधी प्रजातियाँ जैसे नीलम, गरिमा, श्वेता, आदि की बुवाई के लिए चयन करना चाहिए |
बुवाई अक्टूबर के तीसरे सप्ताह तक कर देना चाहिए |
चना सरसों एवं कुसुम के साथ सहफसली करने से गालमिज का प्रकोप कम हो जाता है |
संतुलित एवं संस्तुत किस्मो का प्रयोग करें|
प्रकाश प्रपंच लगाकर प्रौढ़ मख्खियों को आकर्षित कर मारा जा सकता है |
कलियाँ बनना प्रारंभ होते ही सप्ताह के अन्तराल पर सर्वेक्षण करते रहना चाहिए तथा ५ प्रतिशत प्रकोपित कलियाँ पाए जाने पर मिथाइल-ओं-डेमेटान २५ ई. सी.१ लीटर मोनोक्रोटोफास ३६ ई. सी. ७५० मिली. अथवा इन्डोसल्फान ३५ ई. सी. १.२५ लीटर मात्रा ७५० से ८०० लीटर पानी में घोलकर छिडकाव करना चाहिए |
प्रभावी बिन्दु: १. संस्तुत प्रजातियों के प्रमाणित बीज प्रयोग करें|२. संतुलित मात्रा में उर्वरक प्रयोग करें|३. सिंचाई उपलब्धता होने पर फूल आने के समय कम से कम एक सिंचाई अवश्य करें|४. गालमिज के नियंत्रण के लिए कली बनते समय ही किसी कीटनाशक का छिड़काव करें |