Introduction
:
ज्वार खरीफ में चारे की मुख्य फसल है। देशी किस्मो में प्रोटीन कम होने से यह एक अपूर्ण निर्वाहक आहार माना जाता है। परन्तु उन्नतिशील किस्मों में ७-९ प्रतिशत तक प्रोटीन पायी जाती है। जिससे ये किस्में निर्वाहक आहार है। जिसकी खेती करना लाभदायक होती है।
Soil Conditions
:
दोमट, बलुई दोमट तथा हल्की और औसत काली मिट्टी जिसका जल निकास अच्द्दा हो ज्वार की खेती के लिए अच्द्दी है।
Varieties
:
मीठी ज्वार (रियो) पी.सी. ६ ,पी.सी. ९ ,यू.पी.चरी १ व २, पन्त चरी ३ , एच.सी. ३०८, हरियाना चरी-१७१
Field preparation
:
एक जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से तथा २-३ जुताईयां देशी हल से करनी चाहिये।
Seed & Sowing
:
बुवाई का समय: ज्वार की बुवाई जून/जुलाई मे कर देनी चाहिये वर्षा न होने की दशा में बुवाई पलेवा करके करना चाहिये। बीज की दर: द्दोटे बीजों वाली किस्मो जैसे (मीठे ज्वार) रियों का बीज २५-३० किग्रा. तथा दूसरी किस्मों का ३०-४० किग्रा. प्रति हेक्टेयर रखना चाहियें। इसे फलीदार फसले जैसे लोबिया के साथ (२:१) के अनुपात में बोना चाहियें। बुवाई की विधि: बीज की बुवाई हल के पीद्दे ३० सेमी. की दूरी पर बोये।
Nutrient management
:
उर्वरक का प्रयोग मिट्टी परीक्षण के आधार पर करना अच्द्दा रहता है। सामान्य तौर पर ८०-१०० किग्रा. नत्रजन तथा ४० किग्रा. फास्फोरस प्रति हेक्टयर देने से चारे की अच्द्दी उपज प्राप्त की जा सकती है। नत्रजन की आधी मात्रा तथा कुल फास्फोरस बुवाई के समय खेत मे डालने चाहिये। शेष आधी मात्रा नत्रजन बुवाई के २५-३० दिन बाद टाप ड्रेसिंग करना चाहिये। मिलवा फसल में ६० किग्रा. नत्रजन ४० किग्रा. फास्फेट का प्रयोग करे।
Water management
:
जून में बुवाई करने पर सूखे की स्थिति में १ या २ सिचाई की आवश्यकता पड़ती है।
Harvesting & Threshing
:
फसल चारे के लिए ६०-७० दिनों में कटाई योग्य हो जाती है। पौष्टिक चारा पाप्त करने हेतु कटाई फूल आने पर करना चाहियें।
Yield
:
किस्मों के अनुसार हरे चारे की उपज लगभग २५०-४५० कुन्तल तक हो जाती है।
बहु कटान वाली ज्वार
एम.पी. चरी एवं पूसा चरी २३ एस.एस.जी ५९-८ (मिठी सुडान) एम.एफ.एस.एच.३ पन्त संकर ज्वार-५ इन्हे एक से अधिक कटाई के लिए ज्वार की सबसे अच्द्दी किस्म माना गया है। इसमें ७-९ प्रतिशत प्रोट्रीन होती है तथा ज्वार मे पाया जाने वाला विष हाइड्रोसायनिक अम्ल भी कम होता है।