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ज्वार की खेती मुख्यतः प्रदेश के झांसी, हमीरपुर, जालौन, बांदा, फतेहपुर, इलाहाबाद, फर्रूखाबाद, मथुरा एवं हरदोई जनपदों मे होती है।
प्रजातियों का चयन अच्छी उपज प्राप्त करने हेतु उन्नतिशील प्रजातियों का शुद्घ बीज ही बोना चाहिये। बुवाई समय क्षेत्र अनुकूलता के अनुसार प्रजाति का चयन करें। विभिन्न क्षेत्रों के लिये संस्तुत प्रजातियों के विशेषतायें तथा उपज क्षमता तालिका में दर्शायी गयी है। ज्वार की उन्नतिशील प्रजातियां प्रजाति पकने की अवधि (दिन में) ऊचाई से०मी० दाने की उपज (कु./हे.) सूखे चारे (कु./हे.) उपज भुट्टे के गुण उपयुक्त क्षेत्र संकुल प्रजातियाँ वर्षा १२५-१३० २००-२२० हल्का २५-३० १००-११० दो दुनिया हल्का बादामी बुन्देलखण्ड को छोड़कर समस्त उ०प्र० सी.एस.बी १३ १०५-१११ १६०-१८० २२-२७ ७०-८० एक दुनिया चमकीला हल्का बादामी समस्त उ०प्र० सी.एस.बी. १५ १०५-१११ २२०-२४० २३-२८ १००-११० एक दुनिया चमकीला हल्का बादामी समस्त उ०प्र० एस.पी.बी.-१३८८ (बुन्देला) ११०-११५ २४०-२५० ३०-३५ १२०-१२५ भुट्टा गठा हुआ एक दुनिया दाना बडा मोती के समान सफेद चमकीला समस्त उ०प्र० विजेता १००-११० २४०-२५० ३०-३५ ११५-१२० तदैव तदैव संकर प्रजातियां सी.एस.एच १६ १०५-११० २०० ३८-४२ ९०-९५ लम्बा मध्यम बादामी एक दुनिया समस्त उ०प्र० सी.एस.एच ९ ११०-११५ १७५-२०० ३५-४० ८०-१०० एक दुनिया चमकीला हल्का तदैव सी.एस.एच. १४ १००-१०५ १८०-२०० ३५-४० ८०-१०० एक दुनिया चमकीला हल्का तदैव सी.एस.एच. १८ ११५-१२५ १८०-२०० ३५-४० ८०-१०० तदैव तदैव सी.एस.एच. १३ ११५-१२५ १६०-१८० ३५-४० ८०-१०० तदैव तदैव सी.एस.एच. २३ १२०-१२५ १५०-१८० ४०-४५ ७५-१२० तदैव तदैव
अच्छी उपज प्राप्त करने हेतु उन्नतिशील प्रजातियों का शुद्घ बीज ही बोना चाहिये। बुवाई समय क्षेत्र अनुकूलता के अनुसार प्रजाति का चयन करें। विभिन्न क्षेत्रों के लिये संस्तुत प्रजातियों के विशेषतायें तथा उपज क्षमता तालिका में दर्शायी गयी है।
संकुल प्रजातियाँ
वर्षा
१२५-१३०
२००-२२० हल्का
२५-३०
१००-११०
दो दुनिया हल्का बादामी
बुन्देलखण्ड को छोड़कर समस्त उ०प्र०
सी.एस.बी १३
१०५-१११
१६०-१८०
२२-२७
७०-८०
एक दुनिया चमकीला
हल्का बादामी
समस्त उ०प्र०
सी.एस.बी. १५
२२०-२४०
२३-२८
एक दुनिया चमकीला हल्का बादामी
एस.पी.बी.-१३८८ (बुन्देला)
११०-११५
२४०-२५०
३०-३५
१२०-१२५
भुट्टा गठा हुआ एक दुनिया दाना बडा मोती के समान सफेद चमकीला
विजेता
११५-१२०
तदैव
संकर प्रजातियां
सी.एस.एच १६
१०५-११०
२००
३८-४२
९०-९५
लम्बा मध्यम बादामी एक दुनिया
सी.एस.एच ९
१७५-२००
३५-४०
८०-१००
एक दुनिया चमकीला हल्का
सी.एस.एच. १४
१००-१०५
१८०-२००
सी.एस.एच. १८
११५-१२५
सी.एस.एच. १३
सी.एस.एच. २३
१५०-१८०
४०-४५
७५-१२०
खेत का चुनाव तथा तैयारी बलुई दोमट अथवा ऐसी भूमि जहां जल निकास की अच्छी व्यवस्था हो, ज्वार की खेती के लियें उपयुक्त होती है। बुन्देलखण्ड क्षेत्र में ज्वार की खेती प्रायः मध्यम भारी भूमि में की जाती है। मिट्टी पलटने वाले हल से पहली जुताई तथा अन्य दो तीन जुताइयों देशी हल से करके खेत को भलि भाँति तैयार कर लेना चाहियें।
खेत का चुनाव तथा तैयारी
बलुई दोमट अथवा ऐसी भूमि जहां जल निकास की अच्छी व्यवस्था हो, ज्वार की खेती के लियें उपयुक्त होती है। बुन्देलखण्ड क्षेत्र में ज्वार की खेती प्रायः मध्यम भारी भूमि में की जाती है। मिट्टी पलटने वाले हल से पहली जुताई तथा अन्य दो तीन जुताइयों देशी हल से करके खेत को भलि भाँति तैयार कर लेना चाहियें।
बुवाई (अ) समय :ज्वार की बुवाई हेतु जून के अंन्तिम सप्ताह से जुलाई के प्रथम सप्ताह तक का समय अधिक उपयुक्त है।(ब) बीज दर :एक हे. क्षेत्र की बुवाई के लिये १० - १२ किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है। संकर : ७ - ८ कु./हे. संकुल: १० - १२ कु./हे. बीजोपचार बोने से पूर्व एक किलोग्राम बीज को थीरम के २.५ ग्राम शोधित कर लेना चाहिये। जिससे अच्छा जमाव होता है एवं कंडुवा रोग नहीं लगता है। दीमक के प्रकोप से बचने हेतु २५ मिली. प्रति किलोग्राम बीज की दर से क्लोरपायरीफास से शोधित करें। पंक्ति और पौधों की दूरी ज्वार की बुवाई ४५ सेमी. की दूरी पर हल के पीछे करनी चाहिये। पौधें से पौध की दूरी १५-२० सेमी. होनी चाहिये। देशी ज्वार को अरहर के साथ मिलाकर छिटकाव विधि से बोते हैं। इसमें उपज ठीक नही होती है। अतः देर से पकने वाली अरहर की दो पक्तियों के बीच एक पंक्ति ज्वार का बोना उचित होगा।
बुवाई
(अ) समय :ज्वार की बुवाई हेतु जून के अंन्तिम सप्ताह से जुलाई के प्रथम सप्ताह तक का समय अधिक उपयुक्त है।(ब) बीज दर :एक हे. क्षेत्र की बुवाई के लिये १० - १२ किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है।
बोने से पूर्व एक किलोग्राम बीज को थीरम के २.५ ग्राम शोधित कर लेना चाहिये। जिससे अच्छा जमाव होता है एवं कंडुवा रोग नहीं लगता है। दीमक के प्रकोप से बचने हेतु २५ मिली. प्रति किलोग्राम बीज की दर से क्लोरपायरीफास से शोधित करें।
पंक्ति और पौधों की दूरी
ज्वार की बुवाई ४५ सेमी. की दूरी पर हल के पीछे करनी चाहिये। पौधें से पौध की दूरी १५-२० सेमी. होनी चाहिये। देशी ज्वार को अरहर के साथ मिलाकर छिटकाव विधि से बोते हैं। इसमें उपज ठीक नही होती है। अतः देर से पकने वाली अरहर की दो पक्तियों के बीच एक पंक्ति ज्वार का बोना उचित होगा।
उर्वरक उर्वरकों का प्रयोग मृदा के आधार पर करना श्रेयस्कर होगा। उत्तम उपज के लिए संकर प्रजातियों के लिए ८०:४०:२० किलोग्राम एवं अन्य प्रजायितों हेतु ४०:२०:२० किलोग्राम नत्रजन फास्फोरस तथा पोटाश प्रति हे. प्रयोग करना चाहियें। नत्रजन की आधी मात्रा तथा फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा खेत मे बुवाई के समय कूंडो में बीज के नीचे डाल देना चाहियें। तथा नत्रजन के शेष १/२ भाग बुवाई के लगभग ३०-३५ दिन बाद खड़ी फसल में प्रयोग करना चाहियें।
उर्वरकों का प्रयोग मृदा के आधार पर करना श्रेयस्कर होगा। उत्तम उपज के लिए संकर प्रजातियों के लिए ८०:४०:२० किलोग्राम एवं अन्य प्रजायितों हेतु ४०:२०:२० किलोग्राम नत्रजन फास्फोरस तथा पोटाश प्रति हे. प्रयोग करना चाहियें। नत्रजन की आधी मात्रा तथा फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा खेत मे बुवाई के समय कूंडो में बीज के नीचे डाल देना चाहियें। तथा नत्रजन के शेष १/२ भाग बुवाई के लगभग ३०-३५ दिन बाद खड़ी फसल में प्रयोग करना चाहियें।
सिंचाई फसल में बाली निकलते और दाना भरते समय यदि खेत में नमी कम हो तो सिंचाई व्यवस्था कर दी जाय अन्यथा इसका उपज पर प्रतिकूल प्रभाव पडता है।
फसल में बाली निकलते और दाना भरते समय यदि खेत में नमी कम हो तो सिंचाई व्यवस्था कर दी जाय अन्यथा इसका उपज पर प्रतिकूल प्रभाव पडता है।
निराई गुडाई बुवाई के तीन सप्ताह बाद फसल की निराई-गुडाई कर देना चाहिये। यदि खेत में पौधो की संख्या अधिक हो तो थिनिग कर दूरी निश्चित कर ली जाय। रासायनिक नियंन्त्रण के लिए एट्राजीन ५० प्रतिशत १.५ किलोग्राम प्रति हे० की दर से बुवाई के २ दिन बाद ८०० लीटर पानी में घोलकर छिडकाव किया जायें।
बुवाई के तीन सप्ताह बाद फसल की निराई-गुडाई कर देना चाहिये। यदि खेत में पौधो की संख्या अधिक हो तो थिनिग कर दूरी निश्चित कर ली जाय।
रासायनिक नियंन्त्रण के लिए एट्राजीन ५० प्रतिशत १.५ किलोग्राम प्रति हे० की दर से बुवाई के २ दिन बाद ८०० लीटर पानी में घोलकर छिडकाव किया जायें।
ज्वार के रोग ज्वार का भूरा फफूंदी (ग्रेन मोल्ड) पहचान: प्रारम्भिक अवस्था में बीमारी सफेद रंग की फफूंदी बालियों एवं वृन्त पर दिखाई देती है। अन्ततः जो दाने बनते है वह भद्दे एंव उनका रंग हल्का गुलाबी भूरा या काला फफूंदी के अनुसार हो जाता है। रोग ग्रसित दाने हल्के या भुरभुरे हो जाते है। ऐसे दानों का उपयोग स्वास्थ के लिए हानिकारक होता है। यह बीमारी ज्वार की संकर प्रजाति अथवा शीघ्र पकने वाली प्रजातियां में प्रायः अधिक पाई जाती है। उपचार: मैंकोजेब २ किलोग्राम/हे० की दर से छिडकाव करें।
ज्वार का भूरा फफूंदी (ग्रेन मोल्ड)
पहचान: प्रारम्भिक अवस्था में बीमारी सफेद रंग की फफूंदी बालियों एवं वृन्त पर दिखाई देती है। अन्ततः जो दाने बनते है वह भद्दे एंव उनका रंग हल्का गुलाबी भूरा या काला फफूंदी के अनुसार हो जाता है। रोग ग्रसित दाने हल्के या भुरभुरे हो जाते है। ऐसे दानों का उपयोग स्वास्थ के लिए हानिकारक होता है। यह बीमारी ज्वार की संकर प्रजाति अथवा शीघ्र पकने वाली प्रजातियां में प्रायः अधिक पाई जाती है।
उपचार: मैंकोजेब २ किलोग्राम/हे० की दर से छिडकाव करें।
कीट ज्वार की प्ररोह मक्खी (शूट फ्लाई) पहचान : यह घरेलू मक्खी से छोटे आकार की होती है। जिसका शिशु (मैगेट) जमाव के प्रारम्भ होते ही फसल को हानि पहुचाता है। उपचार : मिथाइल ओ-डिमेटान (२५ ई.सी.) १ लीटर/हे० अथवा मोनोक्रोटोफास (३६ डब्लू. एस. सी.) १ लीटर प्रति हे० का छिडकाव करें। तना छेदक कीट पहचान: इस कीट की सूडियां तने में द्देद करके अन्दर ही अंदर खाती रहती है। जिससे बीज का गोभ सूख जाता है। उपचार : मक्का के तना छेदक के लिये बताये गये उपायों को प्रयोग करें। ईयर हेड मिज पहचान: प्रौढ़ मिज लाल रंग की होती है। और यह पुष्प पर अण्डे देती है। लाल मेगेट्स दानो के अन्दर रहकर उसे खाती है। जिससे वे सूख जाते है। उपचार: इन्डोसल्फान (३५ ई.सी.) १.५ लीटर प्रति हे.। अथवा कार्बराइल (५० प्रतिशत घुलनशील चूर्ण) १.२५ किलोग्राम प्रति हे०। इयर हेड कैटर पिलर पहचान: इसकी गिडारे मुलायम दानों को खाकर नष्ट कर देती है। तथा भुट्टो में जाला बना देती है। उपचार: इन्डोसल्फान ३५ ई.सी. १.५ लीटर प्रति हेक्टर का द्दिडकाव करें। ज्वार का माइट पहचान: यह बहुत ही द्दोटे अष्टपदीय होता है। जो पत्तियों की निचली सतह पर जाता है। बुनकर उन्ही के अन्दर रहकर प्रत्तियों से रस चूसता है। ग्रसित पत्ती लाल रंग की हो जाती है। तथा सूख जाती है। उपचार: निम्न रसायनों में से किसी एक का द्दिडकाव करना चाहियें। डाइमेथोएट (३० ई. सी.) १ लीटर प्रति हेक्टर अथवा क्लोरपायरीफास २५ ई.सी. १.५-२.०० ली०/हे०।
पहचान : यह घरेलू मक्खी से छोटे आकार की होती है। जिसका शिशु (मैगेट) जमाव के प्रारम्भ होते ही फसल को हानि पहुचाता है।
उपचार :
तना छेदक कीट
पहचान: इस कीट की सूडियां तने में द्देद करके अन्दर ही अंदर खाती रहती है। जिससे बीज का गोभ सूख जाता है।
उपचार : मक्का के तना छेदक के लिये बताये गये उपायों को प्रयोग करें।
ईयर हेड मिज
पहचान: प्रौढ़ मिज लाल रंग की होती है। और यह पुष्प पर अण्डे देती है। लाल मेगेट्स दानो के अन्दर रहकर उसे खाती है। जिससे वे सूख जाते है।
उपचार:
इयर हेड कैटर पिलर
पहचान: इसकी गिडारे मुलायम दानों को खाकर नष्ट कर देती है। तथा भुट्टो में जाला बना देती है।
उपचार: इन्डोसल्फान ३५ ई.सी. १.५ लीटर प्रति हेक्टर का द्दिडकाव करें।
ज्वार का माइट
पहचान: यह बहुत ही द्दोटे अष्टपदीय होता है। जो पत्तियों की निचली सतह पर जाता है। बुनकर उन्ही के अन्दर रहकर प्रत्तियों से रस चूसता है। ग्रसित पत्ती लाल रंग की हो जाती है। तथा सूख जाती है।
उपचार: निम्न रसायनों में से किसी एक का द्दिडकाव करना चाहियें। डाइमेथोएट (३० ई. सी.) १ लीटर प्रति हेक्टर अथवा क्लोरपायरीफास २५ ई.सी. १.५-२.०० ली०/हे०।
सूत्रकृमि रोकथाम हेतु गर्मी की गहरी जुताई आवश्यक है। मुख्य बिन्दु
सूत्रकृमि
रोकथाम हेतु गर्मी की गहरी जुताई आवश्यक है।
मुख्य बिन्दु
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Hemant Sharma
A User from Hanumangarh, Rajasthan,India
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